देहरादून।
प्रदेश में लगातार यह चर्चा गर्म है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को बदला जा सकता है। दिल्ली दरबार में भाजपा के कई नेता सक्रिय बताए जा रहे हैं। मीडिया के बड़े हिस्से में भी यह खबरें लगातार आ रही हैं। लेकिन इसी बीच भाजपा देहरादून महानगर अध्यक्ष सिद्धार्थ अग्रवाल पर सवाल उठ रहे हैं कि वे इस चर्चा पर प्रतिक्रिया देने वाले युवाओं और आम नागरिकों पर पुलिसिया कार्रवाई करवाकर उन्हें डराने-धमकाने का प्रयास कर रहे हैं।
आलोचकों का कहना है कि भाजपा ने अपने ही कार्यकाल में कई बार मुख्यमंत्री बदले हैं। नित्यानंद स्वामी, भुवनचंद्र खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत—ये सभी भाजपा सरकार के कार्यकाल में ही मुख्यमंत्री पद से हटाए गए थे। ऐसे में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा कोई नई बात नहीं है।
मूल निवास–भू कानून समन्वय संघर्ष समिति और अन्य संगठनों ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि जनता की आवाज़ दबाने के लिए पुलिस का इस्तेमाल किया जा रहा है। आरोप यह भी है कि उत्तराखंड पुलिस आज तक अंकिता हत्याकांड में वीआईपी का नाम उजागर नहीं कर पाई, लेकिन मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा करने वाले युवाओं पर तुरंत मुकदमा दर्ज कर देती है।
समिति ने कहा कि भाजपा नेताओं को प्रदेश की ज्वलंत समस्याओं—जैसे देहरादून की गंदगी, खराब ट्रैफिक व्यवस्था और अधूरे विकास कार्यों—पर ध्यान देना चाहिए, न कि सोशल मीडिया पर जनता की राय व्यक्त करने वालों को धमकाने पर। संगठन ने स्पष्ट किया कि वह आम नागरिक और युवाओं की आवाज़ के साथ खड़ा है।
विपक्षी दलों और सामाजिक संगठनों ने भी सवाल उठाया है कि अगर मुख्यमंत्री बदलने की चर्चा अपराध है, तो फिर मुकदमा केवल कुछ व्यक्तियों पर क्यों, जबकि यह चर्चा पूरे उत्तराखंड में हो रही है।
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