“माफ करना, अंकिता” – न्याय की लड़ाई में एक और हार

नई दिल्ली/देहरादून – उत्तराखंड की बेटी अंकिता भंडारी के लिए न्याय की आस में लड़ी जा रही कानूनी लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट में झटका लगा, जब वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसाल्विस द्वारा दायर सीबीआई जांच की याचिका को बिना ‘वीआईपी’ आरोपी को पकड़ने के ही खारिज कर दिया गया।

 

गोंसाल्विस ने अपने भावुक पत्र में न केवल अंकिता की माँ, सोनी देवी, बल्कि इस मामले में निष्पक्ष जांच की माँग करने वाले पत्रकारों और गवाहों के प्रति भी सहानुभूति जताई। उन्होंने लिखा, “मुझे खेद है, अंकिता, कि हम तुम्हारे असली गुनहगार तक नहीं पहुँच सके। मुझे खेद है कि पुलिस ने न केवल इस केस को कमजोर किया, बल्कि सबूतों को मिटाने और असली आरोपी को बचाने के लिए भी काम किया।”

 

10 बड़े सवाल जो अंकिता के केस में अब भी अनुत्तरित हैं

 

1. व्हाट्सएप चैट को चार्जशीट में शामिल क्यों नहीं किया गया?

अंकिता ने अपने दोस्त पुष्पदीप को बताया था कि एक वीआईपी उनसे ‘स्पेशल सर्विस’ की माँग कर रहा था।

 

 

2. मूल आरोपी का साथी, जो हथियार और पैसे लेकर होटल में आया था, अब तक जांच से बाहर क्यों है?

 

3. गवाह अभिनव की गवाही, जिसमें उसने कहा था कि अंकिता रो रही थी, चार्जशीट से क्यों गायब कर दी गई?

 

 

4. अंकिता के कमरे की फॉरेंसिक रिपोर्ट क्यों नहीं लगाई गई?

 

 

5. सबसे अहम, क्राइम सीन यानी रिजॉर्ट का कमरा बुलडोज़ क्यों किया गया?

 

 

6. होटल स्टाफ के मोबाइल फोन पुलिस ने क्यों नहीं जब्त किए?

 

 

7. होटल के सीसीटीवी कैमरे अचानक खराब कैसे हो गए?

 

 

8. पुलिस ने कॉल डिटेल रिकॉर्ड की अधूरी जानकारी ही क्यों दी?

 

 

9. मोटरसाइकिल पर अंकिता की आखिरी वीडियो को ‘नो डिस्ट्रेस सिग्नल’ के रूप में क्यों पेश किया गया, जबकि उसने फोन कर अपने डर के बारे में बताया था?

 

 

10. मुख्य आरोपी पुलकित आर्या ने नार्को टेस्ट की माँग की थी, जिसे ट्रायल कोर्ट ने क्यों खारिज कर दिया?

 

 

 

कानून भी हुआ लाचार?

गोंसाल्विस ने अपने पत्र में लिखा, “अगर यह मामला सीबीआई को सौंप दिया जाता, तो वीआईपी की पहचान और भूमिका उजागर हो सकती थी। लेकिन सत्ता के दबाव में पुलिस और कोर्ट, दोनों ने सच्चाई की राह रोक दी।”

 

अंकिता की माँ ने पहले ही आरोप लगाया था कि वीआईपी एक उच्च पदस्थ राजनेता था, जो अक्सर होटल में अपने लोगों के साथ आता था। अब जब केस कमजोर किया जा चुका है, तो क्या न्याय की कोई उम्मीद बची है?

 

उत्तराखंड की जनता एक सवाल पूछ रही है – क्या आम महिलाओं की ज़िंदगी इतनी सस्ती है कि सत्ता और पैसे के आगे न्याय भी बिक जाए?

 

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