लोकतंत्र की डकैती: नैनीताल में चुनावी दिन नेताओं की ‘लाईव गुंडागर्दी’, भाजपा जिलाध्यक्ष प्रताप बिष्ट समेत 11 पर अपहरण, हत्या के प्रयास और दंगे की धाराओं में मुकदमा

नैनीताल।

गुरुवार को जिला पंचायत चुनाव में जो हुआ, उसने साबित कर दिया कि उत्तराखंड में अब चुनाव बैलेट से नहीं, बर्बरता से जीतने का खेल बन गया है। लोकतंत्र के मंदिर कहे जाने वाले चुनावी मैदान को नेताओं ने गुंडों का अखाड़ा बना दिया। नतीजा—दिनदहाड़े अपहरण, हत्या की कोशिश और दंगे की धाराओं में भाजपा जिलाध्यक्ष प्रताप बिष्ट, जिला मंत्री प्रमोद बोरा, पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष आनंद सिंह दरम्वाल सहित 11 पर मुकदमा।

 

सुबह 10:15 बजे का समय, जिला पंचायत कार्यालय के बाहर का नजारा—वोट डालने आए जिला पंचायत सदस्य प्रमोद सिंह कोटलिया और उनके साथियों को एक गुट ने घेर लिया, लाठियां-घूंसे चले, फिर पुलिस और नेताओं के सामने उनका कथित अपहरण कर लिया गया। और नेताओं का रोल? बस तमाशबीन की तरह देखना।

 

आरोपियों की लिस्ट में भाजपा जिलाध्यक्ष प्रताप बिष्ट से लेकर बड़े-बड़े राजनीतिक नाम शामिल हैं। पीड़ित पक्ष का कहना है कि हमलावरों ने सिर्फ सदस्यों को नहीं उठाया, बल्कि बीच-बचाव करने वालों को भी पीटा और मोबाइल तक छीन लिए—शायद इसलिए कि ‘साक्ष्य’ लोकतंत्र को बिगाड़ न दें।

 

विडंबना ये कि घटना के समय विधायक सुमित हृदेश, पूर्व विधायक संजीव आर्या, नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्या और राहुल छिमवाल मौजूद थे। लेकिन कानून और व्यवस्था का ‘प्रहसन’ इतना गहरा था कि पुलिस भी मूकदर्शक बनी रही।

 

इस वारदात ने साबित कर दिया है कि यहां चुनाव में जीतने के लिए जनता का दिल जीतना नहीं, बल्कि विपक्ष की हड्डियां तोड़ना ज्यादा कारगर तरीका समझा जाता है। और हां, अब असली चुनौती वोटों की गिनती नहीं, बल्कि लापता सदस्यों की गिनती है।

 

अगर यही है ‘विकसित उत्तराखंड’ का चुनावी मॉडल, तो लोकतंत्र के लिए शायद अगला चुनाव अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में कराना पड़ेगा।

 

पहाड़पन की खबरें आपको कैसी लगती हैं? हमें व्हाट्सएप पर अवश्य साझा कीजिए!

📞 +917409347010

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!