गैरसैंण के रामलीला मैदान में मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की बर्खास्तगी की मांग को लेकर चल रही भूख हड़ताल आज छठे दिन भी जारी रही,आंदोलन की चिंगारी अब पहाड़ के हर कोने तक फैल रही है,चौखुटिया, मासी, सल्ट, भिकियासैंण, कर्णप्रयाग और गैरसैंण सहित विभिन्न क्षेत्रों से सामाजिक और राजनीतिक संगठनों के साथ आम जनता भी इस आंदोलन में जुड़ने लगी है।
भूख हड़ताल पर बैठे पूर्व फौजी भुवन सिंह कठायत ने स्पष्ट कहा कि यह लड़ाई पहाड़ी स्वाभिमान की है”या तो मंत्री की कुर्सी रहेगी या मेरे प्राण।” उन्होंने लोगों से समर्थन देने की अपील की,लेकिन यह भी कहा कि उन्हें उठाने का सुझाव न दिया जाए।
किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय ने सरकार और प्रशासन पर बड़ा सवाल उठाते हुए कहा कि एक पूर्व सैनिक को 44 घंटे तक अकेले छोड़ दिया गया, लेकिन अब पहाड़ी समाज अपने सम्मान की रक्षा के लिए एकजुट हो रहा है। “यह आंदोलन अब पूरे पर्वतीय समाज का संघर्ष है, और यह तब तक जारी रहेगा जब तक सम्मान वापस नहीं आता। अगर प्राण भी चले जाएं, तो इससे समाज की चेतना जागेगी।”
सैनिक पुत्री कुसुम लता बौड़ाई ने कहा, “हमने अपना राज्य आंदोलनकारियों के बलिदान से पाया है, और इसे संभालना भी हमें ही आता है। सैनिक की संतानें अपने समाज के सम्मान के लिए जान तक देने के लिए तैयार रहती हैं,स्वाभिमान से बढ़कर कुछ नहीं ना प्राण,ना पद। सरकार झुकेगी, अवश्य झुकेगी!”
धरना स्थल पर शुरू से मौजूद 19 वर्षीय युवा आयुष रावत ने इसे किसी दल या बैनर से परे, एक स्वतंत्र सम्मान की लड़ाई बताया। उन्होंने कहा, “जरूरत पड़ी, तो मैं भी भूख हड़ताल शुरू करूंगा।”
कल 17 मार्च को इस आंदोलन को और समर्थन मिलने की संभावना है। जगह-जगह से लोगों के पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। गैरसैंण का रामलीला मैदान अब एक नए क्रांतिकारी आंदोलन का गवाह बन रहा है,जहां फैसला सिर्फ दो में से एक होगा, या तो सरकार झुकेगी या कोई बड़ा बलिदान होगा।
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