✍🏻 कार्तिक उपाध्याय
महिला दिवस पर जब हम महिलाओं बेटियों की उपलब्धियों और संघर्षों की बात करते हैं, तो उत्तराखंड के पहाड़ों से निकलकर अपने हौसले की कहानी लिखने वाली एसिड अटैक सर्वाइवर कविता बिष्ट की दास्तां हमें झकझोर देती है। दर्द, पीड़ा, समाज की प्रताड़ना और सरकारी उदासीनता के बावजूद कविता बिष्ट ने अपने साहस से साबित किया कि बेटियां कमजोर नहीं होतीं, वे हर कठिनाई को पार कर नया इतिहास लिख सकती हैं।
बचपन और परिवार की संघर्षभरी जिंदगी
कविता बिष्ट का जन्म उत्तराखंड के रानीखेत जिले के बग्वालीपोखर गांव में हुआ। उनके परिवार में माता-पिता, भाई-बहन सहित छह सदस्य थे, लेकिन आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि उन्होंने केवल हाई स्कूल तक पढ़ाई करने के बाद मजदूरी शुरू कर दी। ₹30 रोज की मजदूरी से उन्होंने अपने पिता का हाथ बटाना शुरू किया।
लेकिन पहाड़ की जिंदगी सिर्फ भूगोल में ही कठिन नहीं होती, कविता के लिए यह असल संघर्ष का मैदान बन गया।
पहली त्रासदी: बड़ी बहन का निधन और नोएडा की ओर रुख
2007 में उनकी बड़ी बहन का देहांत हुआ, जिससे परिवार पर और आर्थिक संकट आ गया। कविता ने परिवार की जिम्मेदारी निभाने के लिए नोएडा जाने और नौकरी करने का फैसला किया। वे एक प्राइवेट कंपनी में काम करने लगीं, ताकि अपने छोटे भाई-बहन को अच्छी शिक्षा दे सकें। लेकिन उन्हें अंदाजा नहीं था कि यह सफर उनकी जिंदगी का सबसे भयानक मोड़ लेकर आएगा।
सबसे काला दिन: जब तेजाब ने छीन ली कविता की दुनिया
शनिवार की सुबह, नोएडा— कविता रोजाना की तरह ड्यूटी जाने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी थीं। एक मनचला लगातार उनसे दोस्ती और शादी का दबाव बना रहा था। जब कविता ने उसे साफ इनकार कर दिया, तो उसने सुबह 5:15 बजे उनके चेहरे पर तेजाब फेंक दिया।
तेजाब से न सिर्फ कविता का चेहरा झुलस गया, बल्कि उन्होंने अपनी दोनों आंखें भी खो दीं। एक झटके में उनकी दुनिया अंधेरे में समा गई।
प्रशासन और अस्पताल की बेरुखी
घटनास्थल पर मौजूद लोग कविता को लेकर अस्पताल पहुंचे, लेकिन सरकारी और निजी अस्पतालों ने पहले एफआईआर और कानूनी कार्रवाई की मांग कर इलाज से इनकार कर दिया।
सुबह से तड़प रही कविता के लिए उनकी कंपनी मदर संस ने दोपहर 2:30 बजे एंबुलेंस भेजी और दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया।
अस्पताल में मौत से जंग
कविता 8 दिन तक बेहोश रहीं, 34 दिन आईसीयू में रहीं और करीब ढाई महीने अस्पताल में भर्ती रहीं। लेकिन इस दौरान अपराधी को सजा दिलाने की लड़ाई और भी मुश्किल थी।
अपराधी बच निकला, परिवार पर बना दबाव
तेजाब फेंकने वाले युवक को पुलिस ने गिरफ्तार किया, लेकिन अपराधी और प्रशासन की मिलीभगत के कारण कविता के माता-पिता पर केस वापस लेने का दबाव बनाया गया।
अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रही कविता एफआईआर में अपना बयान भी दर्ज नहीं करवा सकीं और अंततः उनके माता-पिता को मजबूर होकर केस वापस लेना पड़ा। अपराधी मात्र एक महीने में जेल से छूट गया।
समाज की दोहरी मार: कुछ ने हिम्मत बढ़ाई, कुछ ने अपमान किया
इलाज के बाद जब कविता पहाड़ वापस आईं, तो समाज ने उनके झुलसे चेहरे पर ताने कसे। लोगों ने उन्हें ही दोषी ठहराया, जिससे कविता का दर्द और बढ़ गया।
लेकिन दूसरी ओर, कुछ नेकदिल लोगों ने उनका हौसला बढ़ाया, जिससे उन्होंने हकीकत को स्वीकार कर आगे बढ़ने का फैसला किया।
2012 और 2016: जब दुखों का पहाड़ टूटा
2012 में छोटी बहन का निधन, 2016 में पिता का साया उठ गया। जीवनभर दर्द सहने वाली कविता ने फिर भी हार नहीं मानी।
नई पहचान: जब बनीं उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण की ब्रांड एंबेसडर
2015 में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने उन्हें उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण की ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया और ₹13,500 प्रति माह मानदेय की घोषणा की। यह उनके लिए एक नई उम्मीद थी।
लेकिन 2018 में त्रिवेंद्र सरकार ने बिना सूचना उनका मानदेय बंद कर दिया, जिससे उनके जीवन की कठिनाइयाँ फिर बढ़ गईं।
कविता की कहानी पर लिखी गईं किताबें
कविता के संघर्ष को देखकर कई लेखकों ने उनके ऊपर पुस्तकें लिखीं:
“एसिड वाली लड़की” – प्रतिभा जोशी
“Beauty Behind Her Scars” – जय जोशी
“नवल” और “जनपक्ष” – गिरीश चंद जोशी
एक सपना जो अभी पूरा होना बाकी है
कविता खुद का होटल खोलना चाहती हैं, ताकि गरीबों को सस्ता और अच्छा खाना खिला सकें। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण उनका सपना अधूरा है।
बेटी दिवस पर कविता जैसी बेटियों को सलाम
आज जब सरकारें बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारे लगाती हैं, तो कविता बिष्ट की कहानी हमें बताती है कि हकीकत इससे कोसों दूर है।
कविता जैसी बेटियाँ अपने संघर्ष से समाज को आईना दिखा रही हैं। उनके हौसले को सलाम, जिन्होंने तेजाब के घावों से ज्यादा गहरे समाज के घाव सहे, फिर भी अपनी पहचान बनाई।
“कविता सिर्फ एक नाम नहीं, वह उन तमाम बेटियों की आवाज़ है, जिन्हें यह समाज कमजोर समझता है, लेकिन वे अपने साहस से हर चुनौती को पार कर जाती हैं।”
बेटी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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