नैनीताल।
नैनीताल जिले में शिक्षा से जुड़े विवाद एक बार फिर गर्मा गए हैं। निजी स्कूलों द्वारा अभिभावकों से मनमाने ढंग से शुल्क वसूली, कैपिटेशन फीस और महंगी किताबों की अनिवार्यता को लेकर स्थानीय अभिभावकों में जबरदस्त आक्रोश है। प्रशासन की ओर से लगातार नोटिस जारी किए जा रहे हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष पीयूष जोशी ने इस मुद्दे को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही ठोस कार्रवाई नहीं की गई तो न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जाएगा और जरूरत पड़ने पर जनांदोलन भी किया जाएगा।
प्रशासन की नोटिस कार्रवाई सिर्फ कागजों तक सीमित!
बीते वर्ष 13 दिसंबर 2023 को खंड शिक्षा अधिकारी, हल्द्वानी (नैनीताल) द्वारा निजी स्कूलों को आरटीई अधिनियम 2009 के तहत अवैध शुल्क वसूली पर रोक लगाने के निर्देश जारी किए गए थे। इसमें यह स्पष्ट किया गया था कि कैपिटेशन शुल्क वसूलने पर स्कूलों पर दस गुना तक जुर्माना लगाया जाएगा, जबकि अन्य अनियमितताओं पर ₹25,000 से ₹50,000 तक का दंड निर्धारित किया गया था। बावजूद इसके, इस आदेश का पालन निजी स्कूलों में नहीं किया गया और अभिभावकों का आर्थिक शोषण जारी रहा।
शिक्षा विभाग के नए सख्त निर्देश, फिर भी निजी स्कूल बेपरवाह
मार्च 2025 में शिक्षा विभाग ने दो महत्वपूर्ण नोटिस जारी किए, जिनमें शिक्षा शुल्क पारदर्शिता, टीसी सत्यापन और पुस्तक मानकीकरण को लेकर नए दिशा-निर्देश दिए गए।
1. फीस पारदर्शिता – सभी स्कूलों को अपनी फीस संरचना वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी होगी।
2. महंगी किताबों पर रोक – कोर्ट के आदेशानुसार, केवल एनसीईआरटी की किताबें अनिवार्य होंगी, अन्य किताबों का मूल्य भी एनसीईआरटी के समकक्ष ही होना चाहिए।
3. अनियमितताओं पर दंड – यदि कोई स्कूल अवैध शुल्क वसूली में लिप्त पाया जाता है तो उस पर दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
इसके अलावा, मुख्य शिक्षा अधिकारी, नैनीताल ने अभिभावकों को राहत देने के लिए शिकायत दर्ज कराने हेतु ईमेल आईडी और हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं।
पीयूष जोशी का दो टूक – अब नोटिस नहीं, ठोस कार्रवाई चाहिए
सामाजिक कार्यकर्ता पीयूष जोशी ने शिक्षा विभाग की निष्क्रियता पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि केवल नोटिस जारी कर देने से समस्या हल नहीं होगी। उन्होंने प्रशासन से औचक निरीक्षण और कठोर दंडात्मक कार्रवाई की मांग की है। यदि सरकार और शिक्षा विभाग इस दिशा में जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाते तो वे अभिभावकों के साथ मिलकर उग्र आंदोलन छेड़ने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
अब क्या होगा?
निजी स्कूलों की मनमानी पर प्रशासनिक उदासीनता ने अभिभावकों को मजबूर कर दिया है कि वे अपनी आवाज बुलंद करें। अब देखना होगा कि शासन और शिक्षा विभाग इस पर ठोस कार्रवाई करता है या फिर यह मामला केवल कागजी नोटिसों तक ही सीमित रह जाएगा।
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