सड़कों का हो रहा विकास लेकिन फुटपाथ का गायब होना चिंता का विषय,राहगीर कहां चलें:-डॉ अतुल सक्सेना

सरकार लगातार नई-नई सड़कों का निर्माण कर रही है सड़क चौड़ीकरण कर रही है,लेकिन सड़कों के इस निर्माण के बीच जो फुटपाथ हुआ करते थे वह अब विलुप्त होते जा रहे हैं या तो उन फुटपाथ पर अतिक्रमण है या सड़क चौड़ीकरण कर सीधे गाड़ियों की रफ्तार के लिए विकास किया जा रहा है,ऐसे में अब राहगीर कहां चले यह बड़ी चिंता का विषय है।
इस चिंता को व्यक्त करते हुए डॉक्टर अतुल सक्सेना जी ने अपने विचार पहाड़पन को भेजे हैं,जानिए वह क्या कहते हैं…..

पहले जब हम सब छोटे थे तों स्कूल सड़क के किनारे बने फूटपाथ पर पैदल चल कर जाते थे और उसी से आते थे। कभी किसी गाड़ी का भय भी नहीं होता था कि कब कौन सी गाड़ी आएगी और पीछे या आगे से ठोंक जाएगी। बस पैदल इन पर चल प्रकृति का आनंद ले अपने दोस्तों के साथ गप्पियाते चले आया व ज़ाया करते थे। सर्दी हो या गर्मी, हो या बरसात ये फूटपाथ सदैव हम सबके पथ-प्रहरी हुआ करते थे।हम सबको उन फूटपाथों के हर मोड़ आज भी याद होंगे।

इन पथों ने हम सबकों भविष्य की राह दिखाई जिन पर चल हम सब अपने अपने भविष्य की ओर अग्रसित हुए और अपने अपने मुक़ाम पर पहुँचे। सुख हों या दुःख, हमेशा इन पथ-प्रहरी ने साथ दिया।

यें पथ-प्रहरी राह पर हम सबका विश्वास थे। विश्वास भी ऐसा कि खोने का भय होता था और मन में यहीं गीत याद आता था कि किसी राह पर किसी मोड़ पर कहीं चल ना देना तूँ छोड़ कर मेरे हमसफ़र मेरे हमसफ़र..

पर अफ़सोस अब वो पथ-प्रहरी समय के साथ कब और कहाँ ओझल हो गए पता ही नहीं चला।

हाँ ये अक्सर रात में नज़र आते है जब दुकानो का समान दुकानो के अंदर हो जाता है ….

ठेले वाले जब घर को चले जाते है…तब ये पथ-प्रहरी दबी कुचली शीर्ण अवस्था में यदा कदा नज़र आते है। दुकानों का सामान हटते ही इनका सम्मान नज़र आता है।

अच्छे दिनों की आस ने हम सबके राह का विश्वास छीन लिया हम सबका पथ-प्रहरी छीन लिया। आज विकास की रफ़्तार ने हम सबकी राह भयभीत कर दी है हम सबका अपना साथी हम सबका विश्वास हम सबका पथ-प्रहरी हमसें छीन लिया।

कल ये हम सबका गूगल था मीलो तक हम इसपे चलें जाते थे उसकी हर एक निशानी हम सबकी गवाहगार थीं। इन पर चल ऐसा लगता था कि मानो इसका एक एक पत्थर अपने होने की गवाही दे रहा हों, अपनापन लगता था, यें राहें हम सबकी आस थी, हम सबकी विश्वास थी, ना भय था ना हम भयभीत थे।

मैंने कुछ नवाबों के शहर में साइकलों के पथ देखें कई बार हम सबने उस पर साइकिल भी चलाई पर कई सालो से अब वो भी यदा कदा ही नज़र आते है।
पर अफ़सोस अब वहाँ कीं आबोंहवा बदल चुकी है अब ना तों वो पथ प्रहरी नज़र आते है ना वो साइकिल लहरी….

आज भी वो पथ प्रदर्शक पथ प्रहरी मूक रूप से अपनी सेवाए दे रहा है। पर अफ़सोस हज़ारों करोड़ों लोगों को पथ देने वाले के लिए किसी ने भी आवाज़ नहीं उठाई, किसी ने भी नारे नहीं लगाए, “…सड़कों के गड्ढे तों सबको नज़र आते है पर नज़र वालों को हम नज़र नहीं आते है”……

बस एक गीत इनकी याद में याद आ रहा ….. चिट्टी ना कोई संदेश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए…..मेरे अपने प्यारे पथ प्रहरी…मेरे अपने प्यारे पथ प्रहरी……… “फूटपाथ”

“अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चिराग तू मेरी आख़री मंज़िल है मेरा साथ ना छोड़”
-मज़हर इमाम

“अब तो इस राह से वो शख़्स गुज़रता भी नहीं
अब किस उम्मीद पे दरवाज़े से झाँके कोई”-दीपाली अग्रवाल

“सिर्फ़ इक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में
मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही”
-अब्दुल हमीद अदम

-डॉ अतुल सक्सेना की कलम से

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