रामनगर – धनगढ़ी नाले में 11 अगस्त को हुए बस हादसे में दो शिक्षकों की मौत ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया, लेकिन उसके बाद जो हुआ, उसने सरकारी तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया। मृतकों के शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल से टैंपो में ले जाया गया।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी अस्पताल में शव वाहन (हेयरस वैन) तक उपलब्ध नहीं था। यह सिर्फ लापरवाही नहीं, बल्कि मृतकों और उनके परिजनों के प्रति असम्मान है।
यह पहली बार नहीं है जब रामनगर सरकारी अस्पताल में ऐसी शर्मनाक स्थिति सामने आई हो। इससे पहले भी कई बार यहां से ऐसी तस्वीरें वायरल हुई हैं, जिनमें शवों को ट्रॉली, पिकअप या अन्य असंगत साधनों से ढोया गया। बावजूद इसके, वर्षों से इस स्थिति में कोई सुधार नहीं किया गया।
स्वास्थ्य मंत्री पर निशाना
स्थानीय नागरिकों और सोशल मीडिया यूज़र्स का कहना है कि जब करोड़ों रुपये के बजट का दावा किया जाता है, तो बुनियादी सुविधाओं — जैसे शव वाहन — की व्यवस्था क्यों नहीं हो पाती? यह सवाल सीधे उत्तराखंड के स्वास्थ्य मंत्री से किया जा रहा है कि आखिर कब तक प्रदेश के अस्पतालों में ऐसी असंवेदनशील और शर्मनाक व्यवस्थाएं देखने को मिलेंगी?
लोगों का कहना है कि मंत्री और स्वास्थ्य विभाग सिर्फ फोटोग्राफ और विज्ञापनों में “सुविधा सम्पन्न स्वास्थ्य सेवाएं” दिखाते हैं, जबकि ज़मीनी हकीकत इससे बिलकुल उलट है।
जनता की मांग
जनता ने मांग की है कि रामनगर सहित प्रदेश के सभी अस्पतालों में शव वाहन की स्थायी व्यवस्था की जाए और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो। साथ ही, इस मामले में स्वास्थ्य मंत्री को सार्वजनिक रूप से जवाब देना चाहिए।
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