देहरादून/दिल्ली | पहाड़पन न्यूज़
लोकगायक पवन सेमवाल की गिरफ्तारी ने उत्तराखंड में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर गहरी बहस छेड़ दी है। बताया जा रहा है कि उन्हें उनके गीत ‘धामी तिन नि थामी’ को लेकर दिल्ली से देर रात हिरासत में लेकर देहरादून लाया गया, हालांकि जनआक्रोश और विरोध के चलते बाद में उन्हें मौन रूप से रिहा कर दिया गया।
सेमवाल पर किसी विधिसम्मत अपराध का आरोप नहीं था। उन्होंने न कोई कानून तोड़ा, न ही कोई हिंसक कृत्य किया। उनका “अपराध” केवल इतना था कि उन्होंने अपने गीत के माध्यम से सरकार की जनविरोधी नीतियों, भ्रष्टाचार और मूलनिवासी अधिकारों पर सवाल उठाए।
यह घटना केवल एक कलाकार की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि एक खतरनाक संदेश है—क्या उत्तराखंड में अब सरकार की आलोचना भी अपराध बन चुकी है?
दोहरे मापदंड पर सवाल
राज्य में दोहरे मापदंड की मिसालें अब आम हो चुकी हैं। तीन दिन पूर्व ऋषिकेश में एक भाजपा नेता के करीबी हर्ष चौधरी पर फायरिंग का आरोप लगा था, लेकिन न कोई गिरफ्तारी हुई, न कोई ठोस कार्रवाई। जबकि एक कलाकार को केवल गीत के लिए हिरासत में ले लिया गया।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमला
यह पहला अवसर नहीं है जब उत्तराखंड में असहमति जताने वालों को निशाना बनाया गया हो।
कभी पत्रकारों को चुप कराने की कोशिश होती है।
कभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को देशद्रोही कहा जाता है।
और अब लोक कलाकारों को भी डराने की कोशिश की जा रही है।
प्रश्न यह है:
क्या उत्तराखंड में अब बोलना गुनाह है?
क्या लोकगीत भी पुलिस केस बन सकते हैं?
जनता के सवाल:
VIP अपराधी अब तक क्यों खुलेआम घूम रहे हैं?
बहन-बेटियों की सुरक्षा कब सुनिश्चित होगी?
और अगर कलाकार भी सवाल नहीं उठा सकते, तो लोकतंत्र की बुनियाद किस पर टिकेगी?
निष्कर्ष
लोकतंत्र की असली ताकत सवाल पूछने में है।
पवन सेमवाल की गिरफ्तारी लोकतांत्रिक मूल्यों पर चोट है। उत्तराखंड की जनता अब चुप नहीं बैठेगी।
सवाल उठेंगे, गीत गूंजेंगे — और सत्ताधारी सुनने को मजबूर होंगे।
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