प्रकृति के संरक्षण की दिशा में सरोजनी मैठाणी का योगदान एक प्रेरणास्त्रोत है, मक्कूमठ गांव की यह छप्पन वर्षीय महिला, जिनका बचपन से ही प्रकृति से गहरा जुड़ाव था, आज अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय के कारण एक पूरे जंगल की संरक्षिका बन चुकी हैं। उनकी कहानी ना सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की मिसाल है, बल्कि यह भी दिखाती है कि महिलाओं की ताकत को समझने और उन्हें सही अवसर देने से समाज में बदलाव लाया जा सकता है।
प्राकृतिक समस्याओं का समाधान खोजने की यात्रा
सरोजनी के जीवन में प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पारंपरिक समस्याओं ने उन्हें इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। शादी के बाद जब उन्होंने देखा कि महिलाएं चारा, लकड़ी, और पशुओं के लिए आवश्यक पत्तियों को इकट्ठा करने के लिए दिनभर दूर-दूर तक जाती हैं, तो यह समस्या उनके लिए चिंता का विषय बन गई। उन्हें समझ में आ गया कि सिर्फ इस समस्या का सामना करने से ज्यादा, इसका दीर्घकालिक समाधान खोजना जरूरी है।
इसके बाद सरोजनी ने सोचा कि क्यों न अपने पूर्वजों के बंजर खेतों को हरित क्षेत्र में बदल दिया जाए। इन खेतों में घने झाड़-झंखाड़ उगे हुए थे, जो उन्हें साफ करना था। लेकिन सरोजनी ने देखा कि कुछ झाड़ियों में जैव विविधता का खजाना था, जो पक्षियों और अन्य जीवों के लिए भोजन का स्रोत बन सकती थीं। इस तरह का लोक ज्ञान और उसकी समझ ने उन्हें इन पौधों को बचाने की प्रेरणा दी।
जंगल की पुनरुद्धार की दिशा में उनकी मेहनत
सरोजनी ने इस क्षेत्र में न केवल सफाई की, बल्कि खुद विभिन्न हिमालयी पौधों के बीज भी इकट्ठा किए। मौसमी बदलाव के अनुसार इन बीजों को बुआई करते हुए उन्होंने जंगल की असल पहचान बनानी शुरू की। वह इसे सिर्फ एक जंगल नहीं, बल्कि एक जैव विविधता का केंद्र बनाना चाहती थीं, जहां सभी जीव-जन्तुओं और पेड़ों को जगह मिले।
आज सरोजनी द्वारा लगाए गए जंगल में हजारों हिमालयी पौधों और पेड़ों की प्रजातियां पाई जाती हैं। यह जंगल न केवल जीवों के लिए एक सुरक्षित आवास बन चुका है, बल्कि यह मक्कूमठ गांव के आसपास के लोगों के लिए भी एक आश्रय स्थल के रूप में उभर चुका है।
सतत विकास और संरक्षण पर बल
सरोजनी का मानना है कि पेड़ लगाना महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है उनका संरक्षण। उनका कहना है कि जब तक पेड़ों और वनस्पतियों का सही तरीके से संरक्षण नहीं किया जाता, तब तक उनका अस्तित्व बनाए रखना मुश्किल हो सकता है। वह मानती हैं कि एक सफल पर्यावरण संरक्षण के लिए हमें केवल वृक्षारोपण नहीं, बल्कि सभी जैविक संसाधनों की देखभाल करने की आवश्यकता है।
सामाजिक जागरूकता और बदलाव की दिशा में कदम
सरोजनी का यह कार्य केवल एक जंगल उगाने का नहीं, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय चेतना फैलाने का भी काम कर रहा है। उन्होंने आसपास के गांवों और महिलाओं के बीच पर्यावरण संरक्षण के महत्व को लेकर जागरूकता अभियान भी चलाया। उनके प्रयासों ने यह साबित किया है कि यदि एक व्यक्ति चाहे तो अपनी मेहनत और समर्पण से समाज में बड़ा बदलाव ला सकता है।
सरोजनी की प्रेरणा
सरोजनी मैठाणी की यह यात्रा न केवल उनके गांव के लिए, बल्कि समूचे समाज के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है। उनकी कहानी यह सिखाती है कि यदि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करें और उनका संरक्षण करें, तो हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य बना सकते हैं।
इस कार्य में महिलाओं की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है, और सरोजनी मैठाणी ने यह साबित कर दिया कि महिला सशक्तिकरण का रास्ता भी पर्यावरण संरक्षण से होकर गुजरता है।
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