उत्तराखंड में ‘स्थायी निवासी’ होने की परिभाषा:पहले और अब में बड़ा बदलाव,पहाड़ और पहाड़पन के लिए चिंता का विषय UCC

उत्तराखंड राज्य के स्थायी निवासी होने की परिभाषा समय के साथ बदलती रही है। पहले जहां स्थायी निवासी की पहचान पैतृक आधार, भूमि स्वामित्व, और दीर्घकालिक निवास पर आधारित थी, अब इसे अधिक लचीला और समावेशी बना दिया गया है। वर्तमान परिभाषा में UCC के भीतर राज्य सरकार ने ऐसे कई नए आधार जोड़े हैं, जिससे राज्य में निवास करने वाले या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने वाले व्यक्ति भी ‘निवासी’ के दायरे में आ सकते हैं।

 

पहले ‘स्थायी निवासी’ होने की परिभाषा

उत्तराखंड में स्थायी निवासी का दर्जा पहले निम्नलिखित मानकों पर निर्भर करता था:

 

1. पैतृक भूमि और स्थानीयता आधारित:

स्थायी निवासी वही व्यक्ति माने जाते थे जिनका या जिनके पूर्वजों का मूल निवास उत्तराखंड में हो।

 

इस पहचान का प्रमाण भूमि रिकॉर्ड, स्थानीय निकायों के प्रमाण पत्र या पंचायतों द्वारा जारी किया जाता था।

 

 

2. लंबे समय तक निवास:

जो व्यक्ति उत्तराखंड में 10-15 वर्षों से रह रहा हो, वही स्थायी निवासी का दावा कर सकता था।

 

लंबी अवधि का निवास प्रमाण पत्र (डोमिसाइल) जारी करने के लिए विशेष जांच प्रक्रिया होती थी।

 

 

3. संपत्ति या रोजगार आधारित:

उत्तराखंड में भूमि या मकान का स्वामित्व रखने वाले, या सरकारी नौकरी में स्थायी रूप से कार्यरत व्यक्ति ही निवासी माने जाते थे।

 

भूमि स्वामित्व और रोजगार स्थानीयता का महत्वपूर्ण मापदंड था।

 

 

 

4. स्थानीय निकायों की पुष्टि:

पंचायत, ग्राम सभा या नगरीय निकायों में व्यक्ति का नाम दर्ज होना आवश्यक था।

 

 

 

अब ‘स्थायी निवासी’ होने की परिभाषा में बदलाव

वर्तमान में उत्तराखंड सरकार ने ‘स्थायी निवासी’ होने की परिभाषा में लचीलापन लाते हुए इसे अधिक समावेशी बनाया है। अब ‘स्थायी निवासी’ होने के लिए निम्नलिखित आधार मान्य हैं:

 

1. सरकारी अधिसूचना में पात्रता:

राज्य सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के तहत जो व्यक्ति पात्र माना गया हो, वह उत्तराखंड का निवासी होगा।

 

2. राज्य या केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए विशेष प्रावधान:

उत्तराखंड राज्य सरकार या उसके उपक्रमों में कार्यरत कर्मचारियों को निवासी माना जाएगा।

 

केंद्र सरकार या उसके संस्थानों में कार्यरत ऐसे व्यक्ति जो राज्य में पदस्थ हैं, उन्हें भी स्थानीय निवासी की मान्यता दी जाएगी।

 

3. एक वर्ष का निवास पर्याप्त:

अब उत्तराखंड में केवल एक वर्ष निवास करने वाले व्यक्ति भी स्थायी निवासी कहलाएंगे, बशर्ते उनके पास वैध दस्तावेज हों।

 

4. योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोग:

राज्य या केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोग भी निवासी माने जाएंगे।

 

 

पहले और अब के बीच प्रमुख अंतर

इस बदलाव के प्रभाव

 

1. समावेशिता में वृद्धि: नए नियमों के तहत उन लोगों को भी ‘स्थायी निवासी’ का दर्जा मिल सकेगा, जो बाहर से आकर उत्तराखंड में बसे हैं और यहां की योजनाओं या रोजगार में शामिल हुए हैं।

 

 

2. प्रशासनिक लचीलापन: प्रशासन को अब निवास प्रमाण पत्र जारी करने में अधिक सरलता होगी, क्योंकि नए मानकों के तहत पात्रता अधिक व्यापक हो गई है।

 

 

3. मूल निवासियों की चिंता: हालांकि, इन बदलावों ने मूल उत्तराखंडी निवासियों के बीच चिंताएं भी बढ़ाई हैं। उनका मानना है कि इस बदलाव से बाहरी लोगों को लाभ मिलेगा और राज्य के संसाधनों पर दबाव बढ़ेगा।

 

 

निष्कर्ष

उत्तराखंड में स्थायी निवासी होने की परिभाषा पहले काफी सख्त थी, लेकिन अब इसे बदलकर अधिक लचीला और व्यावहारिक बनाया गया है। यह बदलाव प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाएगा और नए निवासियों के लिए अवसरों के द्वार खोलेगा,हालांकि, सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि मूल निवासियों के हित और राज्य के संसाधनों की रक्षा हो,कुल मिलकर उत्तराखंड के मूल निवासियों के लिए बदलाव बेहद चिंता का कारण बनेगा और धीरे धीरे उत्तराखंड का पर्वतीय समाज अपनी पहचान खो देगा और शहीदों का पर्वतीय राज्य उत्तराखंड अपने पर्वतीय होने की अवधारणा भी।

 

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