उत्तराखंड की राजनीति में एक नया विवाद तूल पकड़ रहा है, जिसमें युवाओं के नेता बॉबी पंवार की आलोचना की जा रही है,यह मामला खासकर उस मंच को लेकर है, जहां श्वेता माहरा, एक ऐसी सार्वजनिक शख्सियत,जो अक्सर पहाड़ विरोधी टिप्पणियों के लिए विवादों में रही हैं, उनके साथ उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार और अन्य नेताओं की मौजूदगी ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है। इस मुद्दे पर गहरी प्रतिक्रिया दिखाई दे रही है,खासकर उन युवाओं और आंदोलनों से जुड़ी शख्सियतों से,जिन्होंने अपनी राजनीति को एक सामाजिक उद्देश्य से जोड़ा है।
रश्मि सती नैनवाल का विश्लेषण: व्यक्तिगत अनुभव और राजनीति की सच्चाई
रश्मि सती नैनवाल,जो उत्तराखंड की राजनीति पर समय-समय पर बेबाक लेख लिखती रही हैं, ने इस विवाद पर अपनी राय दी है। उन्होंने बताया कि उन्हें कई लोगों के संदेश मिले, जो उन्हें बॉबी पंवार के समर्थन में या विरोध में अपनी राय देने के लिए कह रहे थे। हालांकि, रश्मि ने यह साफ किया कि पिछले कुछ सालों में उन्होंने यह फैसला लिया है कि वह किसी भी नेता या पार्टी के पक्ष में अपनी ऊर्जा बर्बाद नहीं करेंगी। उनका कहना है कि राजनीति, समाजसेवा और पत्रकारिता की दुनिया में हर किसी को कभी न कभी विवादों का सामना करना पड़ता है। वह मानती हैं कि राजनीति में जो कुछ भी हो रहा है, उसमें ग्लैमर, पैसा और पावर की भूख भी शामिल है, जो कहीं न कहीं आदर्शों से भटका देती है।
रश्मि ने अपनी पोस्ट में यह भी साझा किया कि पिछले वर्ष की कुछ घटनाओं में उन्होंने UKD (उत्तराखंड क्रांति दल) के नेताओं, जैसे शिव प्रसाद सेमवाल और प्रमिला दीदी के बीच की गाली-गलौज की स्थिति पर लिखा था, जिसके बाद कुछ नेताओं ने उन्हें विरोधी मान लिया था। यह घटनाएं दर्शाती हैं कि राजनीति में व्यक्तित्वों के बीच के संबंध अक्सर उलटफेर का कारण बनते हैं। रश्मि का कहना है कि जब इन्फ्लूएंसर्स और नेता राजनीति में उतरते हैं, तो उनके कार्यों से जुड़े विवाद स्वाभाविक हैं।
कुसुम लता बौड़ाई की प्रतिक्रिया: मंच साझा करने पर सवाल उठाना जरूरी
कुसुम लता बौड़ाई,जो वकालत की छात्रा और पहाड़पन फाउंडेशन की संस्थापक हैं,ने भी इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उनका कहना है कि कल जिन नेताओं ने श्वेता माहरा के साथ मंच साझा किया, वह राजनीति के नाम पर युवाओं के संघर्ष और सम्मान को चोट पहुंचा रहे हैं,कुसुम ने यह आरोप लगाया कि श्वेता माहरा,जिन्होंने कई बार पहाड़ विरोधी और युवा विरोधी टिप्पणियां की हैं, उनके साथ मंच पर आना उन युवाओं के संघर्ष का अपमान है,जो बेरोजगारी और शिक्षा की सही दिशा के लिए सड़क पर उतरे थे।
कुसुम ने यह भी याद दिलाया कि भूपेंद्र कोरंगा जैसे नेता पहले भी इस गलती के लिए ट्रोल हो चुके हैं, और आज फिर से उन्होंने उसी प्रकार की राजनीति की है,जो उनके आंदोलनकारी किरदार और युवाओं के संघर्ष के खिलाफ जाती है।
उनका कहना है कि यह महज एक गलती नहीं है,बल्कि एक जानबूझकर किया गया कदम है,जिसे राजनीति के मैदान में जायज ठहराया जा सकता है, लेकिन यह युवाओं और आंदोलनकारियों के लिए निंदनीय है।
युवाओं के लिए एक बड़ा संदेश: संघर्ष और राजनीति का अंतर
इस विवाद ने एक बड़े सवाल को जन्म दिया है: क्या यह राजनीति का तरीका सही है, जिसमें संघर्ष और आंदोलन को दरकिनार कर केवल सत्ता की चाहत होती है?
उत्तराखंड में बेरोजगार संघ और अन्य आंदोलनों के नेता यह मानते हैं कि यदि राजनीतिक दल और उनके नेता अपनी छवि और समर्थन के लिए ऐसे विवादास्पद व्यक्ति को मंच पर बुलाते हैं, तो यह एक गहरी गलती है।
भूपेंद्र कोरंगा, जो बेरोजगार संघ के कुमाऊं मंडल संयोजक हैं, ने पहले भी इस प्रकार के कदम उठाए थे और ट्रोलिंग का सामना किया था। अब जब वह फिर से श्वेता माहरा के साथ मंच साझा करते हैं, तो यह आंदोलनकारियों और युवाओं के लिए एक धक्का साबित हो रहा है।
क्यों यह घटनाक्रम युवाओं के लिए महत्वपूर्ण है?
यह घटना युवाओं के लिए एक बड़ा संदेश छोड़ रही है,आज के युवा,जो बेरोजगारी,शिक्षा, और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन्हें इस बात से नाराजगी हो रही है कि राजनेता और नेता अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए उनके संघर्ष को नजरअंदाज कर रहे हैं। आंदोलनकारी और युवा अब यह मानते हैं कि अगर राजनीति का यही तरीका रहेगा, तो वे केवल अपनी पढ़ाई और भविष्य की ओर ध्यान देंगे, न कि आंदोलन करेंगे।
निष्कर्ष: संघर्ष और गरिमा का संरक्षण आवश्यक
इस विवाद के बाद यह साफ हो गया है कि राजनीति में केवल सत्ता पाने का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक मुद्दों की लड़ाई, युवाओं का संघर्ष और माटी की गरिमा का भी सम्मान होना चाहिए। श्वेता माहरा जैसे विवादित व्यक्तित्वों के साथ मंच साझा करने से एक तरफ यह संदेश जाता है कि नेताओं को युवाओं के संघर्ष और आदर्शों से कोई फर्क नहीं पड़ता, जबकि दूसरी तरफ यह भी स्पष्ट होता है कि अब युवाओं के लिए राजनीति में उम्मीदें कम होती जा रही हैं।
युवाओं का यह आक्रोश उनके संघर्ष की महत्वपूर्ण कड़ी है,जो भविष्य में राजनीति में बदलाव का कारण बन सकता है,और बॉबी पंवार के लिए कुमाऊं दौरे के बीच विरोध की सुगबुगाहट उनके राजनीतिक भविष्य के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन सकती हैं हालांकि इस घटना का असर सिर्फ औपचारिक रूप से सिर्फ बॉबी पंवार को होगा क्योंकि लोकप्रियता सिर्फ उन्हीं की हैक बाकी अन्य उनके सहारे बड़े नेता बनने के सपने देख रहें,लेकिन युवाओं का इस्तेमाल राजनीति के लिए करना उचित नहीं यह आज के विरोध से स्पष्ट कह सकते है,क्योंकि बॉबी के साथ लगातार आंदोलन करने वाले युवा ही इस बार बॉबी का सीधा विरोध करने लगे है ।
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