गढ़रत्न नेगी दा : कुछ ऐसे लिखा नेगी जी ने अपना पहला गीत

गढ़रत्न नेगी दा

 

नरेंद्र सिंह नेगी ( नेगी दा ) का जन्म : नरेंद्र सिंह नेगी का जन्म 12 अगस्त, 1949 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले में हुआ था।

 

पौड़ी : नेगी जी का जन्मस्थान

पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड का एक खूबसूरत शहर है, जो हिमालय की गोद में बसा हुआ है। यहीं पर नेगी दा का जन्म हुआ और पहाड़ों की शांत और प्राकृतिक खूबसूरती ने नेगी जी के मन में संगीत का बीज बोया।

 

प्रारंभिक जीवन : –

नेगी दा का परिवार : नरेंद्र सिंह नेगी जी के पिता का नाम नायक सूबेदार उमराव सिंह नेगी था और उनके परिवार में उनकी माँ समुद्रा देवी और उनकी 7 बहने और 1 भाई थे।

 

नेगी दा का बचपन : नेगी जी बताते है कि उनका बचपन पहाड़ों पर जैसे हर बच्चे का जीवन होता है वैसे ही काफी संघर्षशील रहा , बड़ा परिवार होने के कारण काफी मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता था क्योंकि घर में कमाने वाले केवल उनके पिता ही थे।

 

शिक्षा : नेगी जी बताते है उनकी प्रारंभिक शिक्षा पौड़ी गाँव में ही हुई, और वे बताते है कि 4थी कक्षा तक वे कन्या विद्यालय में पढे , वे बताते है उनके साथ उनके 3 मित्र भी वहीं कन्या विद्यालय में पढे।

चौथी कक्षा तक पढ़ने के बाद नेगी जी के पिताजी ने उन्हे लैंसडाउन के सैनिक स्कूल में भर्ती करवा दिया लेकिन बाघ के आतंक के कारण उनकी माँ ने जब जिद की तो उनके पिता ने उन्हे वापस पौड़ी बुला लिया। जिसके बाद संभवतः उनकी आगे की पड़ाई पौड़ी से ही हुई, नेगी जी बताते कि उसके बाद वे अपने किन्ही परिचित भाईसाहब के बाद रामपुर bsc के लिए चले गए।

 

नेगी जी की पहली नौकरी : नेगी दा बताते है कि जब में कॉलेज में BSC कर रहे थे उनकी उम्र तकरीबन 18-19 साल की रही होगी, तब उनके मन में परिवार की आर्थिक स्तिथि देखकर इच्छा जागी कि पिताजी के । परिवार की जिम्मेदारी संभाल ली जाए। जिसके बाद पौड़ी में ही रेडियो क्लर्क के पद पर आवेदन करनें के बाद उन्हे वह नौकरी मिल गई , जंहा उन्हे 156 रुपये तंख्वाह मिलती।

 

संगीत जगत में प्रवेश : नेगी दा बताते है जब वे bsc फाइनल वर्ष में थे तो उनके जो भाईसाहब थे वे संगीत की कक्षाएं देते थे तो उन्होंने नेगी जी से भी तबला सीखने को कहाँ जिसके बाद उनकी संगीत में रुचि बढ़ने लगी और पढाई में रुचि कम होने लगी हालांकि उसके बाद वह नौकरी करने वापस लौट पड़े।

 

ऐसे लिखा नेगी जी ने अपना पहला गीत : नेगी जी बताते है कि जब वे नौकरी पर कार्यरत ही थे तो उनके पिता जी की आँखों में मोतियाबिंद की समस्या उत्पन होने लगी जिसके बाद उनके पिताजी ने इधर उधर घूमना बंद कर दिया तब नेगी जी बहुत उदास हुए कि उनके पिता कहीं इधर उधर भी नही जा पा रहे , उस वक़्त पौड़ी में कोई आँखों का अस्पताल भी नही था केवल सीतापुर से एक डॉक्टर साहब 2-3 महीने में एक बार आया करते जब नेगी जी ने उनसे चेकअप करवाया तो उन्होंने बोला कि ये काला मोतिया है ये ठीक नही होगा जिसके बाद उनके पिता जी काफी मायूस हुए।

जिसके बाद नेगी जी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने पता किया कि इसका इलाज कहा हो सकता है तो उनके एक मित्र ने बताया कि इलाज देहरादून चौहाड़पुर ( वर्तमान में विकासनगर ) में इसका इलाज अमेरिकन डॉक्टर लेमन इसका मुफ्त में इलाज करते है, जिसके बाद नेगी जी अपने पिता के साथ देहरादून को निकल पड़े जिसके बाद नेगी जी के पिता को वार्ड में भर्ती कर दिया , जिसके बाद अस्पताल के चौकीदार ने उन्हे बताया कि पास में ही एक ढाबा है जो कि चारपाई किराये पर देते है आप वहाँ से चारपाई ले आओ और यहाँ बरामदे में सो जाओ लेकिन सुबह डॉक्टर के आने से पहले उठ जाना। तो ऐसे ही जबतक नेगी जी के पिताजी अस्पताल में भर्ती रहे तो नेगी जी हर दिन यूँ ही चारपाई लाते और सुबह होते वापस ढाबे में रख आते,तब नेगी जी बताते है कि एक दिन ऐसे ही चारपाई पे लेटे हुए उन्हे अपने घर की याद आई तब उन्होंने लेटे लेटे कुछ पंक्तिया अपने घर अपनी माँ तथा बहनो को याद करते हुए मन ही मन में 3-4 दिन तक गुनगुनाई जो कि उनका पहला गीत बना जिसका शीर्षक था ” सैरा बसग्याल बौण मा” जिसे उन्होंने भविष्य में स्टूडियो में भी रिकॉर्ड किया और वे बताते है कि उन्होंने अपने अधिकतर गीत अपनी माँ को याद करते हुए लिखे है इसलिए जब उनकी माँ का देहांत हुआ तो उन्होंने कहा कि ” मेरी सैड सौंग की हीरोइन चल बसी “।

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