गैरसैंण रामलीला मैदान से उठी गूंज – “स्थायी राजधानी गैरसैंण” की माँग पर अडिग आंदोलनकारी साथियों का संघर्ष
गैरसैंण (भराड़ीसैंण) : उत्तराखंड विधानसभा के चार दिवसीय मानसून सत्र के बीच गैरसैंण एक बार फिर जनांदोलन की तपिश से गूंज रहा है। सदन के भीतर विपक्षी विधायक देर रात तक कानून-व्यवस्था, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर धरने में डटे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर गैरसैंण की स्थायी राजधानी की माँग को लेकर रामलीला मैदान आंदोलन का असली केंद्र बना हुआ है।
रामलीला मैदान में किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष कार्तिक उपाध्याय अपने आंदोलनकारी साथियों संग लगातार धरने पर डटे हुए हैं। देर रात झमाझम बारिश और ठंडी हवाओं के बीच भी ये आंदोलनकारी साथी संघर्ष के बैनर को ओढ़कर अडिग रहे। रातभर रामलीला मैदान में गूंजता रहा एक ही नारा –
“अब चाहिए स्थायी राजधानी गैरसैंण!”
“इंकलाब ज़िंदाबाद!”
संघर्ष की जड़ें राज्य आंदोलन से जुड़ी
धरना स्थल पर मौजूद आंदोलनकारी साथियों का कहना है कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का मुद्दा केवल भौगोलिक दृष्टि से सुविधाजनक होने तक सीमित नहीं है। यह उत्तराखंड राज्य आंदोलन की आत्मा और उन शहीदों के सपनों से भी जुड़ा है, जिनके बलिदान के बाद यह राज्य अस्तित्व में आया।
कार्तिक उपाध्याय का कहना था –
“यह आंदोलन केवल राजधानी की मांग नहीं, बल्कि पहाड़ की जनता की अस्मिता का सवाल है। जब तक गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित नहीं किया जाता, तब तक यह संघर्ष जारी रहेगा।”
भीतर राजनीति, बाहर जन राजनीति
दिलचस्प यह रहा कि जब विधानसभा भवन के भीतर विधायक आरामदायक कुर्सियों और मजबूत सुरक्षा घेरे में धरने पर बैठे थे, उसी समय बाहर बारिश और ठंडी हवाओं में आंदोलनकारी साथी अपने संघर्ष को जिंदा रखे हुए थे। यह दृश्य अपने आप में बड़ा विरोधाभास पेश करता है –
भीतर सत्ता की राजनीति, और बाहर जनता की राजनीति!
गैरसैंण की पुकार
जनप्रतिनिधियों से लेकर आंदोलनकारी साथियों तक, गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की माँग समय-समय पर उठती रही है। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या सत्ता में बैठे नेता जनता की इस गूंज को सुनेंगे?
रामलीला मैदान की भीगी ज़मीन पर बैठे आंदोलनकारी साथियों ने यह संदेश साफ कर दिया है कि –
“राजधानी का सच अब केवल घोषणाओं से नहीं, बल्कि जनता के संघर्ष से तय होगा।”
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