नैनीताल।
जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में जो हुआ, उसने राजनीति और लोकतंत्र दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया। चुनाव से पहले का माहौल किसी सस्पेंस थ्रिलर से कम नहीं था—नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य पर हमले के आरोप, जिला पंचायत सदस्यों को पुलिस के सामने उठाकर ले जाने की घटनाएँ, और चारों ओर ‘जंगलराज’ के नारे।
14 अगस्त को कांग्रेस ने ऐलान किया कि उनके 6 जिला पंचायत सदस्य चुनाव से ठीक पहले ‘गायब’ हो गए हैं। आरोप सीधा था—अपहरण! यशपाल आर्य से लेकर सुमित हिरदेश तक, मंच पर माइक पकड़े नेताओं ने गुस्से और चिंता की मिलीजुली आवाज़ में धरना, विरोध और नारेबाज़ी की बौछार कर दी। पूरा माहौल ‘लोकतंत्र बचाओ’ एपिसोड जैसा लग रहा था।
लेकिन… राजनीति के इस नाटक का क्लाइमेक्स ऐसा निकला कि दर्शक भी हंसी रोक न पाए। अब जो वीडियो सामने आया, उसमें वही ‘लापता’ सदस्य हंसते-मुस्कुराते कह रहे हैं—”हम तो अपनी मर्जी से घूमने आए थे, हमारा अपहरण नहीं हुआ।”
यानी जिस पर कांग्रेस ने ‘अपहरण केस’ का पोस्टर चिपका दिया था, असल में वे तो पिकनिक एन्जॉय कर रहे थे और बयान दे रहे थे कि वे सरकार के सहयोग से क्षेत्र का विकास करेंगे।
अब जनता सवाल पूछ रही है—
क्या यह सच में अपहरण था, या फिर एक ‘राजनीतिक स्क्रिप्ट’ का हिस्सा?
क्या कांग्रेस को अपने ही सिपाहियों की लोकेशन का पता नहीं था, या यह ‘गायब करवाने’ की पुरानी चुनावी तकनीक का नया वर्ज़न था?
और धरना, बयानबाज़ी, आंसू—ये सब किसके लिए था?
इस पूरे घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि नैनीताल के चुनाव सिर्फ जीत-हार का खेल नहीं, बल्कि फुलटाइम एंटरटेनमेंट पैकेज हैं—सस्पेंस, इमोशन, कॉमेडी, सबकुछ एक टिकट में। लेकिन असली सवाल अब भी वहीं है—क्या यहां लोकतंत्र बचा है, या फिर यह सिर्फ नेताओं का ड्रामा मंच बन चुका है?
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