देहरादून/चमोली।
उत्तराखंड की स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले राज्य आंदोलनकारी बाबा मोहन सिंह नेगी ‘बाबा मोहन उत्तराखंडी’ की आज पुण्यतिथि है। 3 दिसंबर 1948 को पौड़ी गढ़वाल जनपद के बठोली गांव में जन्मे बाबा मोहन ने सेना से सेवानिवृत्ति के बाद अपना पूरा जीवन जनहित और पर्वतीय मुद्दों के लिए समर्पित कर दिया।
उन्होंने राज्य निर्माण के बाद गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करने की मांग को लेकर कई बार आमरण अनशन किए। 2 जुलाई 2004 को उन्होंने बेनिताल (आदिबद्री) में आमरण अनशन शुरू किया, जो लगातार 38 दिनों तक चला। प्रशासन की कार्रवाई के बाद उन्हें 8 अगस्त 2004 को कर्णप्रयाग सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, जहां 9 अगस्त की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली।
उनके बलिदान के बाद राज्यभर में शोक और आक्रोश का माहौल रहा। जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए और गैरसैंण राजधानी आंदोलन ने एक नई ऊर्जा पाई। आज भी पहाड़ की जनता उन्हें एक सच्चे जनसेवक और संघर्षशील नेता के रूप में याद करती है।
राज्यभर में उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। लोग संकल्प ले रहे हैं कि गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने का उनका सपना एक दिन अवश्य पूरा किया जाएगा।
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