उत्तराखंड के चर्चित फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक अनुज जोशी ने एक बार फिर अपनी कलात्मक दृष्टि और संवेदनशील लेखनी से दर्शकों का दिल जीत लिया है। उनकी नई फिल्म “गढ़ कुमौ”, जो पहले थिएटर में रिलीज हो चुकी थी, अब हाल ही में Masakbeen यूट्यूब चैनल पर भी उपलब्ध हो गई है। इससे अब वे दर्शक भी इस फिल्म को देख पा रहे हैं जो थिएटर में नहीं पहुंच सके थे।
अनुज जोशी इससे पहले भी “अब ता खुलाली रात” जैसी चर्चित फिल्मों के माध्यम से उत्तराखंड की मिट्टी, संस्कृति और सामाजिक ताने-बाने को बेहद प्रभावी ढंग से सामने ला चुके हैं। “गढ़ कुमौ” भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए समाज को एक नई दिशा देती है।
फिल्म की कहानी
“गढ़ कुमौ” की कहानी एक गढ़वाली लड़के और कुमाऊंनी लड़की की है, जो एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और विवाह करना चाहते हैं। लेकिन जब उनके इस निर्णय की खबर परिवारों तक पहुँचती है, तो सामाजिक भेदभाव और क्षेत्रीय असमानता का चेहरा सामने आता है। गढ़वाल और कुमाऊं – उत्तराखंड की दो प्रमुख सांस्कृतिक इकाइयां – जिनके बीच सदियों पुराना वैचारिक और मानसिक विभाजन आज भी जीवित है, वह इस प्रेम को एक चुनौती बना देता है।
फिल्म इस मुद्दे को बेहद संवेदनशीलता से उठाती है और यह संदेश देती है कि उत्तराखंड की सुंदरता केवल उसके पर्वतों और वादियों में नहीं, बल्कि उसके लोगों की एकता में है।
कलाकारों का उत्कृष्ट अभिनय
फिल्म में संजय सिलौड़ी और अंकिता परिहार ने मुख्य किरदार निभाए हैं। दोनों ने अपने-अपने पात्रों को सजीव बनाया है और दर्शकों को पूरी तरह से जोड़े रखा है। संजय के पिता की भूमिका में उत्तराखंड के प्रतिष्ठित अभिनेता राकेश गौड़ ने एक बार फिर अपने अभिनय से गहराई और गंभीरता भर दी है।
अनुज जोशी की फिल्मों में हमेशा अभिनय, संवाद, लोकेशन और भावनाओं का संतुलन देखने को मिलता है, और “गढ़ कुमौ” भी इससे अछूती नहीं है।
फिल्म का संदेश
“गढ़ कुमौ” केवल एक प्रेम कथा नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की पहचान, उसकी एकता और सांस्कृतिक समरसता की खोज है। फिल्म यह दिखाती है कि भाषा, क्षेत्र या जातीय पहचान कभी भी प्रेम और इंसानियत से बड़ी नहीं हो सकती। यह फिल्म आज के युवाओं से संवाद करती है और उनसे यह आग्रह करती है कि वे अपने भीतर और अपने समाज में गढ़-कुमाऊं की दीवारों को गिराएं।
अब यूट्यूब पर भी उपलब्ध
वैसे तो “गढ़ कुमौ” पहले थिएटर में प्रदर्शित हो चुकी थी और दर्शकों से खूब सराहना पा चुकी है, लेकिन अब यह फिल्म Masakbeen के यूट्यूब चैनल पर भी उपलब्ध है। इससे अब उत्तराखंड समेत देश-विदेश के दर्शक इस फिल्म को देख सकते हैं और उत्तराखंड की इस सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बन सकते हैं।
निष्कर्ष
अनुज जोशी की यह नई प्रस्तुति उत्तराखंड के सिनेमा के लिए एक और मजबूत कड़ी है। “गढ़ कुमौ” फिल्म देखने के बाद यह समझना मुश्किल नहीं कि उत्तराखंड की असली ताकत उसके पहाड़ नहीं, बल्कि पहाड़ों के बीच पल रही एकता की भावना है।
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