आमजन और सामाजिक कार्यकर्ताओं में आक्रोश, उठी सजा सख्त करने की मांग
देहरादून।
उत्तराखंड की धामी सरकार ने हाल ही में आजीवन कारावास की सजा को कम करके 14 साल करने का बड़ा निर्णय लिया है, जिसके बाद से राज्य भर में इस फैसले को लेकर नाराजगी और सवाल उठने लगे हैं।
कई सामाजिक संगठनों, महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों का मानना है कि यह फैसला अपराधियों के मनोबल को बढ़ाने का काम करेगा। विशेष तौर पर यह आशंका जताई जा रही है कि क्या यह कदम अंकिता भंडारी हत्याकांड में दोषियों को राहत देने के उद्देश्य से तो नहीं उठाया गया है, क्योंकि मुख्य आरोपी पुलकित आर्य और उसके साथी इस समय आजीवन कारावास की सजा का सामना कर रहे हैं।
जनता का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि—
“हस्ते-खेलते अपराधी अब सिर्फ 14 साल में सजा पूरी कर बाहर आ जाएंगे? क्या यही न्याय है अंकिता जैसी बेटियों के लिए?”
जहां एक ओर जनता और पीड़ित परिवार सख्त सजा और फांसी की मांग कर रहे थे, वहीं सरकार द्वारा सजा की अवधि घटाना न्याय व्यवस्था की संवेदनशीलता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहा है।
कानूनी जानकारों का कहना है कि:
“सजा का उद्देश्य केवल दंड नहीं, बल्कि अपराध की पुनरावृत्ति रोकना और समाज में डर बनाए रखना होता है। ऐसे फैसले समाज में गलत संदेश देते हैं।”
अब यह देखना बाकी है कि सरकार इस पर स्पष्टीकरण देती है या नहीं। लेकिन इतना तय है कि यह फैसला जनता की भावनाओं और न्याय की उम्मीदों से मेल नहीं खा रहा है।
सवाल बड़ा है – क्या सजा कम करने का फैसला न्याय के नाम पर समझौता है?
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