सिक्किम में पर्यटकों के लिए कचरा थैला अनिवार्य, उत्तराखंड कब उठाएगा ठोस कदम?

गंगटोक/देहरादून | विशेष रिपोर्ट

हिमालयी राज्य सिक्किम ने 21 जुलाई 2024 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में बड़ी पहल की है। अब राज्य में प्रवेश करने वाले हर पर्यटक वाहन के लिए कचरा बैग रखना अनिवार्य कर दिया गया है। इस निर्णय के पीछे उद्देश्य है राज्य में बढ़ते पर्यटन के कारण फैलते प्लास्टिक और अन्य कचरे पर नियंत्रण।

 

सिक्किम का निर्णय क्या कहता है?

सिक्किम सरकार द्वारा जारी आदेश के अनुसार:

 

हर पर्यटक वाहन को यात्रा के दौरान एक बड़ा कचरा बैग साथ रखना होगा।

 

स्थानीय एजेंसियों और टूर ऑपरेटरों को इस नियम की जानकारी पर्यटकों तक पहुंचाना अनिवार्य है।

 

राज्य के भीतर कई चेक-पॉइंट बनाए गए हैं जहाँ इस नियम का पालन सुनिश्चित किया जा रहा है।

 

नियम का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाया जाएगा।

 

 

यह कदम पर्यटकों को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार बनाने और हिमालय की नाजुक पारिस्थितिकी को बचाने के लिए लिया गया है।

 

उत्तराखंड की स्थिति क्या है?

वहीं दूसरी ओर उत्तराखंड, जो हर साल लाखों पर्यटकों और तीर्थयात्रियों का गवाह बनता है, वहाँ पर्यावरणीय प्रबंधन की स्थिति अभी भी चिंताजनक है:

 

चारधाम यात्रा मार्ग, औली, नैनीताल, मसूरी जैसे पर्यटक स्थलों पर प्लास्टिक और कचरे की भरमार है।

 

ट्रेकिंग मार्गों और तीर्थ स्थलों पर सफाई व्यवस्था बेहद कमजोर है।

 

राज्य में अब तक पर्यटक वाहनों के लिए कचरा प्रबंधन से संबंधित कोई स्पष्ट नीति नहीं बनाई गई है।

 

 

क्या उत्तराखंड को सिक्किम से सीखने की ज़रूरत है?

 

उत्तराखंड के लिए यह समय है कि वह सिक्किम जैसे छोटे राज्य से सीख ले और एक ठोस नीति बनाए जो न सिर्फ कचरे पर नियंत्रण करे बल्कि पर्यटन को भी जिम्मेदार और टिकाऊ बनाए।

 

विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड को चाहिए कि वह:

सभी पर्यटक वाहनों के लिए कचरा थैला अनिवार्य करे।

 

टूर ऑपरेटरों और होटलों को जागरूकता और वितरण की जिम्मेदारी दे।

 

मुख्य ट्रेकिंग रूट और धार्मिक स्थलों पर निगरानी तंत्र स्थापित करे।

 

उल्लंघन पर जुर्माना सुनिश्चित करे।

 

 

निष्कर्ष

सिक्किम की यह पहल न सिर्फ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अनुकरणीय उदाहरण है, बल्कि हिमालयी राज्यों के लिए एक स्पष्ट संदेश भी है — पर्यटन से मिलने वाला राजस्व तब तक सार्थक नहीं हो सकता जब तक हम अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा न करें।

 

उत्तराखंड के लिए यह एक चेतावनी भी है और अवसर भी। अब वक्त है कि राज्य एक पर्यावरण-हितैषी और दीर्घकालिक नीति की ओर बढ़े।

 

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