उत्तराखंड हेलीकॉप्टर हादसा: मुख्यमंत्री, उड्डयन सचिव और UCADA CEO पर गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग

देहरादून, 16 जून 2025 – उत्तराखंड के केदारनाथ-गुप्तकाशी मार्ग पर 15 जून को हुए हेलीकॉप्टर हादसे को लेकर जनाक्रोश तेज होता जा रहा है। उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा ने इस गंभीर घटना के लिए उत्तराखंड सरकार और नागरिक उड्डयन विभाग की जिम्मेदारी तय करते हुए गैर-इरादतन हत्या के तहत केस दर्ज करने की मांग की है।

 

स्वाभिमान मोर्चा के प्रतिनिधिमंडल ने एडीजी (कानून व्यवस्था) को ज्ञापन सौंपते हुए स्पष्ट किया कि हादसा प्रशासनिक लापरवाही और नियमों के उल्लंघन का परिणाम है। मोर्चा के महासचिव मोहित डिमरी और उपाध्यक्ष त्रिभुवन चौहान ने कहा कि—

 

“यह पिछले डेढ़ महीने में पांचवीं हेली दुर्घटना है, और यह दिखाता है कि कैसे हेली कंपनियां और अधिकारी सुरक्षा मानकों के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।”

 

 

पूर्व की घटनाओं का हवाला

पत्र में 8 मई को गंगोत्री, 12 मई को बद्रीनाथ, 17 मई को केदारनाथ और 8 जून को बड़ासू हेलीपैड पर हुई घटनाओं का उल्लेख करते हुए दावा किया गया कि इन सभी में प्रशासन की निगरानी विफल रही।

 

नियमों की अनदेखी

15 जून की दुर्घटना को लेकर आरोप लगाया गया है कि—

 

आर्यन एविएशन ने निर्धारित स्लॉट (6:00–7:00 बजे) का उल्लंघन कर सुबह 5:30 बजे उड़ान भरी।

 

कम दृश्यता और खराब मौसम के बावजूद उड़ान की अनुमति दी गई।

 

सिंगल इंजन हेलीकॉप्टरों का लगातार उपयोग किया जा रहा है, जो जोखिमपूर्ण है।

 

 

सरकार और अधिकारियों पर सीधा आरोप

स्वाभिमान मोर्चा ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (जो कि नागरिक उड्डयन मंत्री भी हैं), उड्डयन सचिव, और UCADA के सीईओ पर सीधा आरोप लगाते हुए इनके खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज करने की मांग की है।

 

प्रमुख मांगे:

1. सिंगल इंजन हेलीकॉप्टरों पर तत्काल रोक लगाई जाए।

 

 

2. एक स्वतंत्र न्यायिक जांच समिति का गठन हो।

 

 

3. मृतकों के परिजनों को उचित मुआवजा दिया जाए।

 

 

4. भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त नियम और निगरानी प्रणाली लागू की जाए।

 

चेतावनी

मोर्चा ने स्पष्ट चेतावनी दी कि अगर तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में और बड़े हादसे हो सकते हैं। इस अवसर पर विपिन नेगी और ललित श्रीवास्तव भी मौजूद थे।

यह मामला न केवल उत्तराखंड की हवाई सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि सरकार की जवाबदेही को लेकर भी गंभीर बहस छेड़ता है।

 

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