किसान मकान बचाओ संघर्ष समिति के द्वारा की गई संयुक्त निरीक्षण निरीक्षण की मांग SDM हल्द्वानी को पत्र लिखकर, सिंचाई विभाग ने अब मांगी नई तिथि
हल्द्वानी।
प्रशासनिक लापरवाही और उदासीनता का एक और मामला सामने आया है, जहां किसान मकान बचाओ संघर्ष समिति द्वारा उपजिलाधिकारी हल्द्वानी को लिखे गए पत्र के बाद भी अब तक ज़मीनी कार्रवाई नहीं हुई है। इस मामले में SDM हल्द्वानी ने 7 फरवरी 2025 को सिंचाई विभाग और तहसीलदार को संयुक्त निरीक्षण करने के निर्देश दिए थे, लेकिन राजस्व विभाग के पटवारी अन्य कार्यों में व्यस्त होने के कारण निरीक्षण नहीं हो सका,समिति को सिंचाई विभाग द्वारा दूरभाष के माध्यम से बताया गया आज एक पटवारी अन्य कार्य पर व्यस्त हैं दो दिन बाद निरीक्षण होगा,दो दिन बाद फिर कहा गया आज दूसरे पटवारी व्यस्त हैं आज भी नहीं होगा।
अब 12 फरवरी 2025 को सिंचाई विभाग ने फिर से SDM को पत्र लिखकर राजस्व विभाग से नई तिथि निर्धारित करने की मांग की है।
सवाल यह उठता है कि जब आदेश जारी हो चुके हैं, तो फिर अधिकारी निरीक्षण के लिए समय क्यों नहीं निकाल पा रहे? क्या यह प्रशासनिक उदासीनता नहीं है?
संघर्ष समिति का बड़ा बयान – 15 से अधिक ज्ञापन दिए, लेकिन धरातल पर नहीं हुआ कोई काम!
किसान मकान बचाओ संघर्ष समिति के संस्थापक किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय का कहना है कि अब तक गांवों की अलग अलग समस्याओं को लेकर 15 से अधिक ज्ञापन उपजिलाधिकारी को सौंपे जा चुके हैं। उनके कार्यालय से आदेश तो जारी हो जाते हैं, लेकिन धरातल पर कोई कार्यवाही नहीं होती।
उन्होंने आगे कहा कि यदि 24 घंटे के भीतर ज़मीनी स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई, तो अब तक सौंपे गए ज्ञापनों की पूरी फाइल उपजिलाधिकारी को सौंपेंगे और फिर मुख्य जिलाधिकारी एवं मुख्य सचिव को पत्र भेजकर पूरे मामले की शिकायत करेंगे।
प्रशासनिक लापरवाही का असर पंचायत चुनाव पर भी पड़ेगा!
उत्तराखंड में जल्द ही पंचायत चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में प्रशासनिक उदासीनता और लचर रवैया सरकार की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है। जनता पहले से ही भ्रष्टाचार और लापरवाह प्रशासन और उदासीन सरकार से परेशान है, और यदि जमीनी स्तर पर समस्याओं का समाधान नहीं हुआ, तो इसका सीधा असर आने वाले चुनावों में देखने को मिलेगा।
गांवों में विकास कार्यों की धीमी गति और अधिकारियों की निष्क्रियता को लेकर लोगों में रोष बढ़ता जा रहा है। यदि प्रशासन अपनी कार्यशैली में सुधार नहीं करता, तो यह सरकार के लिए भी सिरदर्द बन सकता है। जनता पंचायत चुनाव में ऐसे मुद्दों को लेकर उम्मीदवारों से जवाब मांग सकती है, जिससे सरकार समर्थित प्रत्याशियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
अब आगे क्या?
संघर्ष समिति ने साफ कहा है कि यदि जल्द ही उचित कार्रवाई नहीं होती, तो वे इस मामले को मुख्य सचिव तक ले जाएंगे और उच्च स्तरीय हस्तक्षेप की मांग करेंगे। सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द प्रशासनिक अमले को सक्रिय करे, अन्यथा यह लापरवाही पंचायत चुनावों में उनके लिए भारी पड़ सकती है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि अधिकारी इस बार भी सिर्फ फाइलों में आदेश घुमाते रहेंगे या ज़मीन पर उतरकर कोई ठोस कार्रवाई करेंगे?
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