देहरादून: हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत चलाने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है,क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टी के राष्ट्रवादी रीजनल पार्टी के संयोजक शिव प्रसाद सेमवाल ने इस फैसले का विरोध करते हुए इसे गरीब और जरूरतमंद जनता के साथ अन्याय करार दिया है,उन्होंने इसे सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को निजीकरण की ओर ले जाने वाला कदम बताया।
संयोजक का बयान
शिव प्रसाद सेमवाल ने कहा कि हरिद्वार नगर निगम ने मेडिकल कॉलेज के लिए 50 बीघा जमीन जनता के हित में दान दी थी,इसे पीपीपी मॉडल में देने का मतलब जनता की स्वास्थ्य सुविधाओं का निजीकरण करना है। उन्होंने कहा, “यह कदम गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाओं से वंचित कर देगा। पीपीपी मॉडल में निजीकरण का मतलब होगा कि अस्पताल और कॉलेज लाभ कमाने की ओर झुकेंगे, जबकि जनता की समस्याएं बढ़ेंगी।
उन्होंने आगे कहा कि यदि सरकार इस निर्णय को लागू करती है, तो इससे न केवल चिकित्सा सेवाएं महंगी होंगी, बल्कि मेडिकल शिक्षा पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। छात्रों को अत्यधिक शुल्क देना होगा, जिससे गरीब और साधारण परिवारों के बच्चों के लिए मेडिकल शिक्षा का सपना टूट सकता है।
सरकार की सफाई
सरकार का कहना है कि पीपीपी मॉडल के तहत कॉलेज में आधुनिक सुविधाएं और उन्नत प्रबंधन प्रणाली लागू की जाएगी। सरकारी अधिकारियों का दावा है कि इस मॉडल से अस्पताल और कॉलेज की सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार होगा।
हालांकि,संयोजक शिव प्रसाद सेमवाल ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि सरकार के पास खुद इस कॉलेज को चलाने के पर्याप्त संसाधन हैं। उन्होंने इसे निजीकरण के लिए एक बहाना करार दिया और मांग की कि सरकार इस निर्णय को तुरंत वापस ले।
स्थानीय जनता और संगठनों की प्रतिक्रिया
स्थानीय निवासियों और सामाजिक संगठनों ने भी इस फैसले पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है। उनका कहना है कि हरिद्वार मेडिकल कॉलेज गरीबों और जरूरतमंदों के लिए एक महत्वपूर्ण सुविधा है, इसे निजीकरण के दायरे में लाना, उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो पहले से ही महंगे चिकित्सा खर्चों से जूझ रहे हैं।
आंदोलन की चेतावनी
संयोजक शिव प्रसाद सेमवाल ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने जनता की भावनाओं को नजरअंदाज किया, तो पार्टी पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन करेगी। उन्होंने कहा, “हम इसे जनहित का मुद्दा मानते हैं। यह केवल हरिद्वार की बात नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के गरीबों और मध्यम वर्गीय परिवारों के स्वास्थ्य और शिक्षा के अधिकार का सवाल है।”
विशेषज्ञों की राय
पहाड़ों के लिए चिंता कर रही युवा कुसुम लता बौड़ाई जोकि लॉ की छात्रा हैं और अपनी सामाजिक संस्था पहाड़पन के माध्यम से पहाड़ों पर बदलाव के लिए प्रयास कर रही हैं उन्होंने भी इसपर अपनी राय रखी है,उनका कहना है कि पीपीपी मॉडल लागू करने से स्वास्थ्य सेवाओं का उद्देश्य मुनाफा कमाने तक सीमित हो जाएगा। इसका असर गरीब मरीजों और मेडिकल छात्रों पर पड़ेगा, जिनके लिए यह कॉलेज एकमात्र उम्मीद है।
निष्कर्ष
हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पीपीपी मॉडल में देने का प्रस्ताव एक बड़ा विवाद बन गया है। क्षेत्रीय पार्टी के संयोजक शिव प्रसाद सेमवाल सहित विभिन्न संगठनों और स्थानीय जनता ने इसे जनविरोधी करार दिया है। अब यह देखना होगा कि सरकार जनता की भावनाओं का सम्मान करती है या अपने निर्णय पर आगे बढ़ती है।
आपका क्या विचार है?
क्या हरिद्वार मेडिकल कॉलेज को पीपीपी मॉडल में देना सही निर्णय है, या यह जनता के स्वास्थ्य और शिक्षा अधिकारों पर असर डालेगा?
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