स्वास्थ्य सेवाएं महंगी: सरकारी इलाज पर बढ़ता आर्थिक बोझ,नागरिकों का मौलिक अधिकार खतरे में

हल्द्वानी।

आम आदमी के लिए स्वास्थ्य सेवाएं दिन-ब-दिन महंगी होती जा रही हैं,सरकारी अस्पतालों में सस्ती चिकित्सा सुविधा की उम्मीद लगाए बैठे मरीजों को अब इलाज के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने होंगे। सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) में 200 से अधिक जांचों की दरों में 30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी का फैसला किया गया है,जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए सरकारी इलाज भी मुश्किल हो सकता है।

 

नई दरें: आम आदमी की जेब पर बोझ

एसटीएच में जिन जांचों की दरें बढ़ाई जा रही हैं, उनमें प्रमुख रूप से ब्लड टेस्ट, बायोकेमिस्ट्री, पैथोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी की जांचें शामिल हैं। कुछ प्रमुख जांचों की नई दरें बढ़ेंगी।

 

इसके अलावा, ओपीडी पर्ची का शुल्क भी 5 रुपये से बढ़ाकर 20 रुपये कर दिया गया है, जिससे हर मरीज को अब अधिक खर्च करना पड़ेगा। वहीं, भर्ती मरीजों के लिए पर्ची का शुल्क 50 रुपये हो जाएगा।

 

तो क्या स्वास्थ्य का मौलिक अधिकार: अब केवल कागजों पर?

संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है, जिसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है। लेकिन बढ़ती चिकित्सा लागतों के कारण यह अधिकार अब केवल दस्तावेजों तक सीमित होता जा रहा है। सरकारी अस्पतालों की पहचान सस्ते और सुलभ इलाज के लिए होती थी, लेकिन अब यहां भी इलाज महंगा होता जा रहा है।

 

गरीबों की मुश्किलें बढ़ीं, निजी अस्पतालों की मौज!

सरकारी अस्पतालों में महंगे होते इलाज के कारण गरीब और मध्यम वर्ग के लोग निजी अस्पतालों की ओर जाने को मजबूर हो रहे हैं,जहां पहले से ही इलाज की लागत कई गुना अधिक है।हेल्थकेयर पर सरकारी खर्च लगातार कम किया जा रहा है, जिससे चिकित्सा का निजीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है।

 

सरकार क्या कर सकती है?

1. जांचों पर सब्सिडी: गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए सरकारी अस्पतालों में मुफ्त या रियायती दरों पर जांच उपलब्ध कराई जाए।

 

2. स्वास्थ्य बजट में वृद्धि: केंद्र और राज्य सरकार को अपने स्वास्थ्य बजट में बढ़ोतरी करनी चाहिए, ताकि सरकारी अस्पतालों की सेवाओं को मजबूत किया जा सके।

 

3. जनकल्याणकारी योजनाओं का सही क्रियान्वयन: आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को सही तरीके से लागू किया जाए, जिससे गरीबों को मुफ्त इलाज मिल सके।

 

4. मूल्य नियंत्रण नीति: जांचों और दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए एक स्पष्ट नीति बनाई जाए।

 

 

 

निष्कर्ष

बढ़ती चिकित्सा लागत आम जनता के लिए एक गंभीर समस्या बनती जा रही है। सरकार को जल्द ही इस मुद्दे पर ठोस कदम उठाने होंगे, वरना स्वास्थ्य का मौलिक अधिकार सिर्फ नाम का रह जाएगा और गरीबों के लिए इलाज एक सपना बनकर रह जाएगा।

 

पर्वतीय राज्य उत्तराखंड की खबरों के लिए आप सभी का अपना न्यूज़ पोर्टल pahadpan.com,खबरों के लिए संपर्क करें +917409347010,917088829995

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!