गढ़वाल, गुजडू गढ़ी: गढ़वाल की प्राचीन धरोहरों में शामिल गुजडू गढ़ी अब अपनी खोई पहचान को लौटाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। क्षेत्रीय जनता और समाजसेवियों की पहल से अगले वर्ष से हर साल ‘गुजडू दिवस’ भव्य रूप से मनाया जाएगा।
हाल ही में क्षेत्रवासियों की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि गुजडू गढ़ी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। 52 गढ़ों में शामिल यह गढ़ी कभी स्थानीय शासकों का शक्ति और संस्कृति केंद्र रही है, लेकिन आधुनिक विकास में उपेक्षित रह गई।
समाजसेवी कुलदीप रावत ने कहा, “हमने कई बार राज्य सरकार और पर्यटन मंत्री से गुजडू गढ़ी को पर्यटन स्थल घोषित करने का अनुरोध किया, लेकिन केवल आश्वासन ही मिला। अब जनता ने तय किया है कि हम खुद इसे विश्व मानचित्र पर एक नया पर्यटन केंद्र बनाएंगे।”
गांव के प्रधान, पूर्व सैनिक, युवा संगठन और महिला समितियों ने इस पहल का समर्थन किया है। युवा नेता मनीष सुन्द्रियाल ने कहा, “यह सिर्फ एक गढ़ी नहीं, हमारी पहचान है। गुजडू दिवस हमें हमारी जड़ों और इतिहास से जोड़ने का अवसर देगा।”
इस पहल से स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर भी खुलेंगे। हस्तशिल्प, लोककला, होमस्टे और ग्रामीण पर्यटन जैसे क्षेत्रों में संभावनाएं बढ़ेंगी। ‘गुजडू दिवस’ के लिए समिति का गठन किया जा रहा है, जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम, ऐतिहासिक झांकियाँ, पारंपरिक भोजन और स्थानीय कलाकारों की प्रस्तुतियाँ शामिल होंगी।
गुजडू गढ़ी के गांवों में अब यह नारा गूंज रहा है – “हम बनाएँगे अपना पर्यटन स्थल, हम दिखाएँगे अपना इतिहास।”
पहाड़पन न्यूज़ के संस्थापक एवं पहाड़पन संस्था के सह-संस्थापक आयुष रावत ने कहा:
“पहाड़ के मेले और कौथियाँ सिर्फ पहाड़ में ही अच्छे लगते हैं। यह हमारी धरोहर है, इनको बचाना और हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाना हमारा कर्तव्य है।”
इस पहल से न केवल गुजडू गढ़ी को नई पहचान मिलेगी, बल्कि यह गढ़वाल की संस्कृति और पर्यटन के लिए भी नई संभावनाओं का द्वार खोलेगी।
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