“सड़क हादसे के बाद शव ई-रिक्शा में: संदीप रावत की मौत ने स्वास्थ्य व्यवस्था और प्रशासनिक संवेदनहीनता की खोली पोल”

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के ग्राम कुंड निवासी 32 वर्षीय संदीप रावत की कल एक सड़क हादसे में मौत हो गई। हादसा बैजरो के पास हुआ, जब वह एक निजी वाहन में सवार थे। जानकारी के अनुसार, वाहन दुर्घटना स्थल से लगभग 4 किलोमीटर दूर एक नदी में जा गिरा।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर आस-पास कोई सुव्यवस्थित बेस हॉस्पिटल होता तो गोल्डन आवर में संदीप को उपचार मिल सकता था और शायद उनकी जान बच जाती।

इस हादसे के बाद एक और दृश्य ने लोगों को व्यथित कर दिया, जब रामनगर के सरकारी हॉस्पिटल की मोर्चरी से पोस्टमार्टम हाउस तक संदीप के शव को ई-रिक्शा में ले जाया गया। यह दृश्य सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिससे शासन-प्रशासन पर सवाल उठने लगे हैं।

 

स्थानीय जनता और सामाजिक संगठनों का आरोप है कि उत्तराखंड को राज्य बने 25 साल हो गए हैं, लेकिन कई ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं।

 

हालांकि, प्रशासन का कहना है कि घायल को तुरंत नजदीकी सुविधाओं के लिए ले जाने की कोशिश की गई, और जांच के बाद ही दुर्घटना के कारणों और उपचार प्रक्रिया को लेकर कुछ कहा जा सकेगा।

 

विश्लेषण:

यह हादसा एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच पर्याप्त है?

क्या जरूरत है राज्य स्तर पर स्थायी, क्षेत्रीय और सामर्थ्यवान हॉस्पिटल नेटवर्क की, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों को रोका जा सके?

 

निष्कर्ष:

संदीप रावत की असमय मृत्यु केवल एक सड़क हादसे की खबर नहीं है — यह पहाड़ में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की स्थिति पर एक बड़ा सवाल भी है, जो जवाब मांगता है।

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