“सज़ा उम्रकैद की, मगर छूट बार-बार की” — आसाराम को फिर मिली जमानत!

अहमदाबाद — दुष्कर्म के मामले में दोषसिद्ध होकर आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे स्वयंभू संत आसाराम बापू को एक बार फिर अदालत से राहत मिली है। गुजरात उच्च न्यायालय ने उनकी अस्थायी (इंटरिम) जमानत अवधि को मंगलवार को बढ़ाकर 3 सितंबर 2025 तक कर दिया।

 

यह राहत उन्हें मेडिकल ग्राउंड्स पर दी गई है। अदालत ने कहा कि आगे की सुनवाई मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट आने के बाद होगी।

 

जनता के सवाल, अदालत की चुप्पी

आसाराम को 2013 में नाबालिग से दुष्कर्म मामले में दोषी पाया गया था और गांधीनगर की अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी। लेकिन तब से वे कभी राजस्थान हाईकोर्ट, कभी गुजरात हाईकोर्ट में “बीमारी” का हवाला देकर अस्थायी जमानत पाते रहे हैं।

 

अब आम लोग पूछ रहे हैं —

क्या जेल अब सिर्फ़ गरीबों के लिए है?

 

क्या स्वास्थ्य कारण सिर्फ़ VIP कैदियों को ही याद आते हैं?

 

अगर यही सुविधा हर आम क़ैदी को भी मिले, तो जेलें खाली हो जाएँ!

 

कानून का तकाज़ा है कि अदालतें दया दिखाएँ, लेकिन बार-बार की राहत ने इस दया को ‘विशेष छूट’ बना दिया है। आलोचकों का तंज है —

“जेल की सलाख़ें सिर्फ़ छोटे अपराधियों के लिए हैं, बड़े नाम वालों के लिए तो अस्पताल और अदालत ही आरामगाह हैं।”

 

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