“लोकतंत्र का सत्र या सत्ता पक्ष का मंच?—गैरसैंण में करोड़ों खर्च, लेकिन विपक्ष की आवाज नदारद”

भराड़ीसैंण— उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र मंगलवार को लगातार दूसरे दिन भी हंगामे की भेंट चढ़ गया। दोपहर 12 बजे तक स्थगन के बाद जब सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई, तो कांग्रेस और निर्दलीय विधायक पंचायत चुनावों में कथित धांधली और लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली घटनाओं पर चर्चा की मांग को लेकर लगातार आवाज उठाते रहे।

 

लेकिन विपक्ष की मांगों पर गंभीर बहस कराने के बजाय सत्ता पक्ष के विधायक अपने-अपने तर्क रखते रहे। कांग्रेस विधायकों का कहना था कि अगर जनहित से जुड़े गंभीर मुद्दों पर ही चर्चा नहीं होनी है, तो विधानसभा सत्र बुलाने और उस पर करोड़ों रुपये खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है।

 

विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी ने सत्ता पक्ष की ओर से उठाई गई बातों को सुना, लेकिन विपक्ष बार-बार अपनी आवाज दबाए जाने का आरोप लगाता रहा। नतीजतन, सदन की कार्यवाही शोर-शराबे और आरोप-प्रत्यारोप के बीच ही चलती रही।

 

जनता के बीच सवाल उठ रहे हैं कि जब विपक्ष की बात सुनने की कोई मंशा ही नहीं है, तो आखिरकार विधानसभा सत्र का उद्देश्य क्या है—क्या यह लोकतंत्र की मजबूती का मंच है या फिर केवल सत्ता पक्ष के लिए ताली बजाने का अखाड़ा?

 

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