रामनगर: कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और तराई के जंगलों में अब बाघ और गुलदार से ज्यादा खतरनाक एक खामोश शिकारी बनकर उभरा है – सांप। हर साल, खासकर मानसून के मौसम में, जहरीले सांप खेतों, झाड़ियों और घरों तक पहुंचकर इंसानों और जानवरों के लिए जानलेवा बन रहे हैं। आंकड़े इस बढ़ते खतरे की गंभीरता को और उजागर करते हैं।
सर्पदंश के आंकड़े (2020-2024):
रामनगर वन प्रभाग : 25 मामले, 1 मौत, 24 घायल
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व : 24 मामले, 2 मौतें, 22 घायल
तराई पश्चिमी वन प्रभाग: 60 मामले, 13 मौतें, 47 घायल
तराई पश्चिमी वन प्रभाग में सांपों के काटने से होने वाली मौतें सबसे ज्यादा चिंताजनक हैं। WWF के कॉर्डिनेटर मीरज अनवर बताते हैं कि डर में लोग सांपों को मारने की कोशिश करते हैं, जिससे हादसे बढ़ रहे हैं। वे जागरूकता और त्वरित इलाज की जरूरत पर जोर देते हैं।
चुनौतियां :
सर्पदंश के इलाज के लिए एंटी-वेनम की कमी और समय पर अस्पताल न पहुंच पाना बड़ा मुद्दा है। कई बार साधारण सर्पदंश भी मौत का कारण बन जाता है। तराई पश्चिमी वन प्रभाग के डीएफ ओ प्रकाश चंद्र आर्य कहते हैं कि ग्रामीणों को प्राथमिक उपचार, सांपों को मारने से बचाने और एंटी-वेनम की उपलब्धता पर काम चल रहा है।
विशेषज्ञ की सलाह:
‘सेव द स्नेक’ समिति के अध्यक्ष और सर्प विशेषज्ञ चंद्रसेन कश्यप, जिन्होंने 55,000 से ज्यादा सांपों का रेस्क्यू किया है, कहते हैं कि गर्मी और मानसून में सांप ज्यादा सक्रिय होते हैं। वे साफ-सफाई रखने, कीटनाशकों के उपयोग और सांप दिखने पर वन विभाग या उनकी समिति से संपर्क करने की सलाह देते हैं। वह कहते हैं, “सांपों से डरें नहीं, समझदारी से निपटें।”
जरूरी कदम
इस खामोश खतरे से निपटने के लिए जागरूकता, प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएं और एंटी-वेनम की आसान उपलब्धता जरूरी है। जब तक इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, सांपों से टकराव और जानलेवा होता रहेगा।
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