राजनीतिक दलों की अज्ञानता और कुसुम लता बौड़ाई की दूरदर्शिता: उम्र के सवालों के बीच नेतृत्व की मिसाल

उत्तराखंड में नगर निकाय चुनावों के दौरान उम्मीदवारों की उम्र सीमा को लेकर कई विवाद सामने आए। इन विवादों ने जहां राजनीतिक दलों की रणनीतियों को सवालों के घेरे में लाया,वहीं पहाड़पन फाउंडेशन की संस्थापक कुसुम लता बौड़ाई ने अपनी दूरदर्शिता और समझदारी से एक अलग मिसाल पेश की।

कुसुम लता ने पर्वतीय समाज का प्रतिनिधित्व करने के उद्देश्य से निर्दलीय चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था,लेकिन उन्होंने यह भी समझा कि चुनावी नियमों का पालन करना और उन्हें चुनौती देना दो अलग बातें हैं।
उम्र सीमा की बाध्यता को स्वीकार करते हुए,उन्होंने चुनाव से पहले ही अपनी स्थिति स्पष्ट की और भविष्य में इस विषय पर न्यायिक समाधान की ओर कदम बढ़ाया।

समझदारी से भरा कुसुम का कदम

चुनाव अधिसूचना जारी होने से पहले,कुसुम लता ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी उम्र स्पष्ट की और चुनाव से अलग हटने का निर्णय लिया,इसके बावजूद,उन्होंने जनहित याचिका दायर करने और इस मुद्दे पर न्यायिक मार्ग अपनाने की ओर कदम बढ़ाया,उनकी यह समझदारी और दूरदर्शिता यह दर्शाती है कि वह न केवल एक जिम्मेदार नागरिक हैं, बल्कि नेतृत्व की योग्यता भी रखती हैं।

राष्ट्रीय दलों की रणनीति और उम्र के विवाद

राजनीतिक दलों की उम्मीदवार घोषणाएं भी उम्र संबंधी विवादों से अछूती नहीं रहीं:

1. हल्द्वानी में भाजपा ने 19 वर्षीय फैजान को प्रत्याशी बनाया, जो उम्र सीमा को लेकर सवालों में घिर गए।

2. रुद्रपुर में आम आदमी पार्टी की मेयर उम्मीदवार किरन विश्वास पांडे का नामांकन 30 वर्ष से कम उम्र होने के कारण खारिज हुआ।

3. दिनेशपुर में भाजपा की प्रत्याशी मनजीत कौर निर्विरोध अध्यक्ष बनीं, क्योंकि विपक्षी प्रत्याशी बबली गोस्वामी का नामांकन खारिज हो गया।

4. नगला नगर पालिका परिषद में कांग्रेस के प्रत्याशी हरिओम चौहान का नामांकन भी उम्र कम होने के कारण खारिज हो गया।

कुसुम लता: नेतृत्व की नई परिभाषा

इन घटनाओं के बीच,कुसुम लता बौड़ाई का समझदारी भरा कदम यह साबित करता है कि चुनावी नेतृत्व केवल उम्र या नियमों से परिभाषित नहीं होता,समाज की भलाई के लिए उनकी प्रतिबद्धता और न्याय की दिशा में उठाए गए कदम उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित करते हैं।

कुसुम लता का कहना है:
“मैंने चुनाव लड़ने का निर्णय समाज की भलाई के लिए लिया था।हालांकि,उम्र सीमा के कारण चुनाव से बाहर होना पड़ा,लेकिन मेरी लड़ाई जारी रहेगी। मैं समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हर संभव प्रयास करूंगी।”

“चुनाव लड़ने का मेरा मकसद केवल पद पाना नहीं था,बल्कि समाज के मुद्दों को आवाज देना था,मैं अपने पहाड़पन फाउंडेशन के माध्यम से शिक्षा,स्वास्थ्य,और रोजगार जैसे क्षेत्रों में काम करती रहूंगी।यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं समाज को वह नेतृत्व दूं, जिसकी वह हकदार है।”

यह समय राजनीतिक दलों और समाज के लिए यह सोचने का है कि नेतृत्व के मापदंड केवल उम्र तक सीमित नहीं होने चाहिए,कुसुम लता बौड़ाई जैसे समझदार और दूरदर्शी व्यक्तियों का नेतृत्व समाज के लिए अधिक सकारात्मक बदलाव ला सकता है।

कुसुम का कदम न केवल उनकी योग्यता को उजागर करता है,बल्कि यह भी दर्शाता है कि लोकतंत्र में समझदारी और नियमों का सम्मान समान रूप से जरूरी है।

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