मर्चुला में फिर दोहराई गई लापरवाही: टूटी पट्टियों वाली बस से छलका मौत का सफर, फर्जी टिकट और ओवरलोडिंग ने बढ़ाया खतरा

अल्मोड़ा (मर्चुला), उत्तराखंड – उत्तराखंड की पहाड़ी सड़कों पर यात्री सुरक्षा से हो रहा समझौता एक बार फिर सामने आया है। मंगलवार को मर्चुला मार्ग पर एक निजी बस में यात्रा कर रहे दर्जनों यात्रियों की जान उस वक्त खतरे में पड़ गई जब बस की सस्पेंशन पट्टियाँ (लीफ स्प्रिंग्स) चलते समय टूट गईं।

 

बस में पहले से ही कुछ पट्टियाँ टूटी हुई थीं, और यात्रा के दौरान अतिरिक्त दबाव के कारण कुछ और पट्टियाँ टूट गईं। अंततः बस केवल एक आखिरी पट्टी के सहारे चल रही थी, जो किसी भी क्षण टूट सकती थी। ऐसी स्थिति में बस को किसी तरह मर्चुला तक लाया गया और यात्रियों को वहीं उतार दिया गया।

 

टिकट और बस नंबर में बड़ा खुलासा

जब यात्रियों ने टिकट की जांच की, तो सामने आया कि टिकट पर अंकित बस नंबर UK 07 PA 2456 था, जबकि वास्तविक बस नंबर UK 19 PA 0156 था। यह स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी और नियमों की खुली अनदेखी है।

फर्जी टिकट

 

बस का असली नंबर

 

जब यात्रियों ने दूसरी बस की मांग की, तो कंडक्टर ने यह कहकर टाल दिया कि ‘आदर्श मोटर्स’ के मालिक ने वैकल्पिक वाहन भेजने से मना कर दिया है। अंततः यात्रियों को मजबूरी में पीछे से आ रही एक बस जो देघाट जा रही थी में चढ़ाया गया, जबकि सवारियों को ढबरा जाना था जो की अलग रूट पर पढ़ता है, देघाट वाली बस पहले से ही 21 यात्रियों से भरी हुई थी। ओवरलोडिंग की स्थिति में सभी को किसी तरह उनके गंतव्य तक पहुंचाया गया।

ओवरलोडेड बस

पहले भी हो चुका है बड़ा हादसा

सबसे चिंताजनक बात यह है कि मर्चुला में पहले भी एक बड़ा सड़क हादसा इसी तरह बस के पट्टे टूटने की वजह से हो चुका है, जिसमें दर्जनों लोगों की जान चली गई थी। उस दुखद अनुभव से भी कोई सबक नहीं लिया गया, और अब एक बार फिर उसी तरह की लापरवाही दोहराई गई है।

 

अब ज़रूरी हैं ये सवाल:

क्या तकनीकी जांच सिर्फ दिखावा बनकर रह गई है?

 

बार-बार यात्रियों की जान खतरे में डालने के बावजूद बस ऑपरेटरों पर कोई सख्ती क्यों नहीं?

 

फर्जी टिकट, ओवरलोडिंग और टूटी बसें — यह सब मिलकर किस बड़े हादसे का इंतज़ार कर रहे हैं?

 

निष्कर्ष: यह प्रशासनिक विफलता नहीं, सीधा अपराध है

मर्चुला की यह घटना बताती है कि उत्तराखंड में सार्वजनिक परिवहन में न तो सुरक्षा की गारंटी है, न जवाबदेही की। अगर इस बार भी सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो अगली त्रासदी प्रशासन की लापरवाही से ही जन्म लेगी।

 

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