बागेश्वर जिले में अवैध खनन पर हाईकोर्ट सख्त: अवैध गतिविधियों पर रोक और खनन पट्टाधारकों की सूची तलब

नैनीताल, 6 जनवरी 2024

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बागेश्वर जिले में हो रहे अवैध खनन को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। मामले में स्वत: संज्ञान (P.I.L. संख्या 174/2024) के तहत कोर्ट ने प्रशासन की उदासीनता पर कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने अवैध खनन गतिविधियों को तुरंत प्रभाव से रोकने का आदेश देते हुए खनन पट्टाधारकों की सूची तलब की है।

 

कोर्ट कमिश्नरों की जांच में हुए चौंकाने वाले खुलासे

कोर्ट द्वारा नियुक्त कमिश्नरों, श्री सरंग धुलिया और श्री मयंक रंजन जोशी, ने प्रभावित गांवों का दौरा कर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट में खनन गतिविधियों के कारण घरों में दरारें आने, पीने के पानी के सूखने, और वन पंचायत की जमीन को नुकसान पहुंचने जैसी चिंताजनक स्थितियों का जिक्र किया गया। रिपोर्ट के अनुसार, खनन गतिविधियां हिलटॉप के पास की जा रही हैं, जिससे आसपास के घरों की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।

 

डी.एम.एफ. फंड का दुरुपयोग

कोर्ट कमिश्नरों ने बताया कि जिला खनन फाउंडेशन (डी.एम.एफ.) का उपयोग जनता के विकास कार्यों के बजाय जिला मजिस्ट्रेट के आवास के रखरखाव के लिए किया जा रहा है। इसके अलावा, वन पंचायत भूमि पर खनन विस्तार ने स्थानीय निवासियों की सुरक्षा और पर्यावरण को गंभीर खतरा पैदा किया है।

 

अवैध धन-प्रस्ताव का आरोप

खननकर्ताओं द्वारा कोर्ट कमिश्नरों को अवैध धन की पेशकश करने की बात भी रिपोर्ट में सामने आई है। इस खुलासे ने प्रशासन और खनन माफियाओं के बीच सांठगांठ के आरोपों को और मजबूती दी है।

 

कोर्ट के निर्देश

1. खनन पर तत्काल रोक: कोर्ट ने बागेश्वर जिले में चल रही सभी खनन गतिविधियों को तुरंत प्रभाव से निलंबित करने का आदेश दिया।

2. खनन पट्टाधारकों की सूची तलब: खनन पट्टाधारकों (वर्तमान और पूर्व) की पूरी सूची प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है।

3. पूरी रिपोर्ट मांगी: एडवोकेट अमिकस क्यूरी को मामले में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है।

4. जवाबदेही तय करने के निर्देश: सचिव (भूविज्ञान एवं खनन) और खनन निदेशक को कोर्ट में अगली सुनवाई में उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया।

 

आगामी सुनवाई

मामले की अगली सुनवाई 9 जनवरी 2025 को निर्धारित की गई है, जिसमें सभी संबंधित अधिकारी कोर्ट में उपस्थित होंगे।

 

निष्कर्ष

इस मामले ने प्रशासन और खनन माफियाओं की मिलीभगत को उजागर किया है। हाईकोर्ट का यह कदम न केवल पर्यावरण की सुरक्षा की दिशा में अहम है, बल्कि यह स्थानीय निवासियों के अधिकारों और सुरक्षा को भी प्राथमिकता देता है।

 

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