बड़ी खबर – 30 मई को अंकिता भंडारी हत्याकांड में आएगा अंतिम फैसला, कोटद्वार कोर्ट के बाहर जुटेंगे उत्तराखंड के प्रमुख संगठन

कोटद्वार से विशेष रिपोर्ट | पहाड़पन

30 मई को आएगा फैसला: अंकिता भंडारी हत्याकांड पर पूरे उत्तराखंड की निगाहें

 

कोटद्वार

उत्तराखंड की न्याय प्रणाली के इतिहास में एक बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव 30 मई को आने जा रहा है। बहुचर्चित और जनमानस को झकझोर देने वाले अंकिता भंडारी हत्याकांड में कोटद्वार की विशेष अदालत इस दिन अंतिम फैसला सुनाएगी। पूरे राज्य में इस निर्णय को लेकर अत्यधिक संवेदनशीलता और प्रतीक्षा का माहौल बना हुआ है।

 

मामले में आरोपी राजनीतिक और रसूखदार वर्ग से जुड़े बताए जाते हैं, जिस कारण इस केस ने शुरू से ही राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियाँ बटोरीं। अब जब अदालत का निर्णय बेहद निकट है, तो जनता की अपेक्षाएँ और आशंकाएँ दोनों चरम पर हैं।

 

❝ क्या अंकिता को मिलेगा इंसाफ़? या एक बार फिर सत्ता और सिस्टम के बीच पीस जाएगी एक बेटी की कुर्बानी? ❞

 

संगठनों की चेतावनी – ‘न्याय नहीं, तो आंदोलन तय’

इस फैसले को लेकर राज्यभर के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संगठनों ने एकजुटता दिखाई है।

उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा, उत्तराखंड क्रांति दल (UKD), मूल निवास भूमि कानून संघर्ष समिति सहित कई संगठनों ने घोषणा की है कि 30 मई को वे कोटद्वार कोर्ट के बाहर एकत्र होंगे।

 

इन संगठनों ने स्पष्ट किया है कि यदि न्याय के साथ कोई भी समझौता हुआ या फैसला जनभावनाओं के खिलाफ गया, तो एक बड़ा और निर्णायक जन आंदोलन खड़ा किया जाएगा।

 

जनता का आक्रोश: ‘VIP कौन था?’

‘पहाड़पन’ की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार आम जनता में जबरदस्त आक्रोश है। खासकर युवा वर्ग, महिलाएं, छात्र संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता इस मामले को लेकर भावनात्मक रूप से जुड़ चुके हैं।

 

उनका एक ही सवाल है:

“वो VIP कौन था जिसकी पहचान आज तक छिपाई गई?”

“सरकार चुप क्यों है?”

“क्या एक आम बेटी को न्याय मिलना अब भी इतना कठिन है?”

 

प्रशासन अलर्ट, सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम

कोटद्वार कोर्ट परिसर में जिला प्रशासन ने भारी पुलिस बल तैनात कर दिया है। अधिकारियों का कहना है कि शांति व्यवस्था बनाए रखना उनकी प्राथमिकता है, लेकिन जनता की भावनाएं भांपते हुए अतिरिक्त सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं।

 

 

उत्तराखंड के लिए यह सिर्फ एक केस नहीं, आत्मसम्मान का प्रश्न है

अंकिता भंडारी की हत्या केवल एक बेटी की हत्या नहीं थी, यह उस सिस्टम पर करारा तमाचा था जिसमें सत्ता और पैसे की ताकत ने इंसानियत को कुचल डाला।

 

आज भी उसकी मां इंसाफ़ की आस लगाए बैठी है। ऐसे में यह फैसला केवल कोर्ट रूम तक सीमित नहीं, बल्कि राज्य की सामाजिक चेतना की परीक्षा है।

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