बड़ी खबर:गोलीकांड प्रकरण में पूर्व विधायक को न्यायायिक जेल तो वर्तमान विधायक को बेल

हरिद्वार

उत्तराखंड की राजनीति में खानपुर विधायक उमेश कुमार और पूर्व विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन के बीच का विवाद तूल पकड़ चुका है। सोशल मीडिया पर शुरू हुई बहस अब हिंसा, कानूनी कार्रवाई और राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गई है।

 

कैसे शुरू हुआ विवाद?

यह विवाद कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर शुरू हुआ, जब उमेश कुमार और कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने एक-दूसरे पर तीखे आरोप लगाए। मामला केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहा। 25 जनवरी 2025 को, उमेश कुमार अपने समर्थकों के साथ चैंपियन के निवास पर पहुंचे, जिससे स्थिति और तनावपूर्ण हो गई।

 

हिंसा में बदला विवाद: फायरिंग और गिरफ्तारी

26 जनवरी को, कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने उमेश कुमार के रुड़की स्थित कार्यालय के बाहर अपने समर्थकों के साथ फायरिंग की। इस घटना ने मामले को हिंसक रूप दे दिया।फायरिंग के तुरंत बाद पुलिस ने चैंपियन को गिरफ्तार कर लिया।उमेश कुमार को भी हिरासत में लिया गया, लेकिन उन्हें जमानत मिल गई।

 

पूर्व विधायक को जेल, वर्तमान विधायक को बेल

कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन: उन्हें रुड़की अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया।

 

उमेश कुमार: मामले में गिरफ्तार होने के बाद आज उन्हें जमानत दे दी गई।

 

 

प्रशासनिक कार्रवाई: शस्त्र लाइसेंस रद्द

चैंपियन और उनके परिवार पर प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की है।चैंपियन, उनकी पत्नी देवयानी सिंह और बेटे दिव्य प्रताप सिंह के नाम पर जारी 9 शस्त्र लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं।

जिलाधिकारी ने शस्त्र लाइसेंस की शर्तों के उल्लंघन और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया।

 

पुलिस की जांच और सुरक्षा व्यवस्था

पुलिस ने दोनों पक्षों के समर्थकों से पूछताछ शुरू कर दी है,घटनास्थल और संबंधित इलाकों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है ताकि कोई और अप्रिय घटना न हो।

 

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

विपक्ष का आरोप: विपक्षी दलों ने सरकार पर निशाना साधते हुए इसे कानून-व्यवस्था की विफलता करार दिया है।

 

जनता की प्रतिक्रिया: सोशल मीडिया पर लोग इस घटना की कड़ी निंदा कर रहे हैं। कुछ इसे नेताओं की व्यक्तिगत रंजिश मानते हैं, तो कुछ इसे सत्ता का दुरुपयोग बता रहे हैं।

 

मामले की व्यापकता: राजनीति से परे का असर

यह घटना केवल राजनीति तक सीमित नहीं रही। इसने समाज में यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जनता के प्रतिनिधि कानून और व्यवस्था का पालन करने के बजाय व्यक्तिगत दुश्मनी को प्राथमिकता दे रहे हैं।

 

निष्कर्ष: क्या कहती है यह घटना?

यह विवाद उत्तराखंड की राजनीति में गहराई से फैले तनाव और व्यक्तिगत प्रतिद्वंद्विता को उजागर करता है। अब यह देखना होगा कि प्रशासन और कानून-व्यवस्था इस मामले को कैसे संभालते हैं।

आने वाले दिनों में यह तय होगा कि क्या यह विवाद शांतिपूर्ण तरीके से समाप्त होगा या फिर राजनीति में एक और नई कड़वाहट जोड़ देगा।

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