नैनीताल, 27 अगस्त –
उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनावों में कथित गड़बड़ियों पर सख्त रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग, डीएम और एसएसपी से जवाब तलब किया है।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने सवाल किया कि पांच पंचायत सदस्यों ने बिना अनुमति वोट क्यों नहीं डाला और अब तक उनके खिलाफ क्या कार्रवाई हुई। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अब तक यह नहीं पूछा गया कि किसने किसे वोट दिया, बल्कि यह देखा जा रहा है कि कहीं किसी को मतदान से रोका या बाध्य तो नहीं किया गया।
ऑब्जर्वर रिपोर्ट पर भी सवाल
चुनाव आयोग के अधिवक्ता संजय भट्ट ने कोर्ट को बताया कि ऑब्जर्वर की रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 मीटर के दायरे में कोई गड़बड़ी नहीं हुई। इस पर खंडपीठ ने सख्त सवाल दागते हुए कहा कि नियमों के अनुसार 500 मीटर के दायरे में भी भीड़ न होने का प्रावधान है, तो फिर 100 मीटर की सीमा किस आधार पर तय की गई?
डीएम और एसएसपी की भूमिका पर नाराजगी
कोर्ट ने डीएम और एसएसपी की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल उठाए। मुख्य न्यायाधीश ने तीखे लहजे में पूछा कि “डीएम पंचतंत्र की कहानी भेज रही थीं क्या?” साथ ही कहा कि एसएसपी पूरी तरह विफल रहे हैं। अदालत ने पूछा कि ऐसे हालात में अधिकारियों के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं।
डीएम वंदना सिंह ने वर्चुअल रूप से पेश होकर बताया कि उन्होंने पुष्पा नेगी की शिकायत पर एसएसपी की रिपोर्ट के आधार पर विस्तृत रिपोर्ट आयोग को भेजी थी। लेकिन अदालत इस जवाब से संतुष्ट नहीं हुई और आयोग की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई।
न्यायालय के निर्देश
चुनाव आयोग को सोमवार तक शपथपत्र दाखिल कर अपना पक्ष स्पष्ट करने का आदेश।
पांच पंचायत सदस्यों की अनुपस्थिति पर गंभीर सवाल, नोटिस क्यों नहीं भेजे गए यह पूछा गया।
कोर्ट ने कहा कि ए.आर.ओ. को सिर्फ पुनर्गणना का अधिकार है, पुनर्मतदान का नहीं।
याची की मांग
वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र पाटनी ने दलील दी कि अपहरण जैसी घटनाओं और नियमों के उल्लंघन के कारण इस चुनाव को रद्द कर पुनः मतदान कराया जाना चाहिए।
अब सभी की निगाहें 1 सितम्बर की सुनवाई पर टिकी हैं, जब चुनाव आयोग को कोर्ट के सामने अपनी कार्रवाई और भूमिका का शपथपत्र पेश करना होगा। अदालत ने साफ कर दिया है कि इस मामले में पारदर्शिता और नियमों की पालना हर हाल में सुनिश्चित की जाएगी।
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