“नैनीताल जिला पंचायत चुनाव: अपहरण के साए में हुई वोटिंग, एक वोट से बना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का फैसला टॉस पर—लोकतंत्र भी सोच में पड़ा!”

नैनीताल — जिला पंचायत का चुनाव या किसी सस्पेंस फिल्म की कहानी?

लंबे विवादों, अपहरण ड्रामे और कोर्ट-कचहरी की उठा-पटक के बाद आखिरकार नैनीताल जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का परिणाम घोषित हो ही गया। मंगलवार को जिला कोषागार में खुले लिफ़ाफ़े से निकली किस्मत ने भाजपा प्रत्याशी दीपा दरमवाल को अध्यक्ष बना दिया। उन्हें 11 वोट मिले, जबकि कांग्रेस की पुष्पा नेगी सिर्फ़ 1 वोट से हार गईं। एक वोट रद्द हो गया, शायद मतदाता ने भी राजनीति से तंग आकर ‘NOTA स्टाइल’ में गलती कर दी होगी।

गौरतलब है कि कुल 27 सदस्य थे, लेकिन मतदान में सिर्फ़ 22 ने ही हिस्सा लिया। बाक़ी पाँच सदस्य ‘कथित अपहरण’ की वजह से लोकतंत्र का चेहरा देखने से वंचित रह गए। कांग्रेस ने अदालत का दरवाज़ा खटखटाया, पुलिस खोजबीन में लगी रही, लेकिन जब तक सबको ढूँढा जाता, चुनाव प्रक्रिया शाम 5 बजे ‘ऑफ़िस टाइम’ ख़त्म होने की तरह बंद हो गई और नतीजे सील कर सुरक्षित रख दिए गए।

उपाध्यक्ष पद का मामला तो और भी दिलचस्प रहा। यहाँ भाजपा और कांग्रेस दोनों की प्रत्याशी—संयोग से दोनों का नाम देवकी बिष्ट—बराबर-बराबर 11-11 वोट पाकर अटक गईं। लोकतंत्र के इस “फोटो फिनिश” का नतीजा फिर टॉस पर निकाला गया। किस्मत की उँगली कांग्रेस की देवकी बिष्ट पर टिक गई और वे उपाध्यक्ष चुनी गईं। यानी जिले की दूसरी सबसे बड़ी कुर्सी ‘जनता की मर्ज़ी’ से नहीं, बल्कि ‘सिक्का उछालकर’ तय हुई।

इस पूरे चुनावी नाटक में अपहरण, अदालत की दखल और टॉस जैसे तमाशे ने जिले की राजनीति को सियासी सर्कस बना डाला। अब देखना दिलचस्प होगा कि ये चुनाव आने वाले समय में नैनीताल की राजनीति को नई दिशा देंगे या फिर यही सवाल गूंजेगा—“जिला पंचायत का चुनाव था या कॉमेडी शो?”

 

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