देहरादून।
उत्तराखंड विधानसभा में शनिवार को ऊर्जा निगम के घाटे पर जब चर्चा शुरू हुई, तो आंकड़ों ने सबको हैरान कर दिया। वर्ष 2021-22 में जहां निगम का घाटा केवल 21 करोड़ रुपये था, वहीं अगले ही वर्ष 2022-23 में यह बढ़कर 1224 करोड़ रुपये हो गया। इस चौंकाने वाले खुलासे ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को सकते में डाल दिया।
विधायक काजी निजामुद्दीन ने बजट पर चर्चा के दौरान यह मुद्दा प्रमुखता से उठाया और कहा कि यह घाटा केवल एक तकनीकी या आर्थिक असफलता नहीं, बल्कि सरकार की नाकामी और भ्रष्ट तंत्र का नतीजा है। उन्होंने सवाल किया कि महज एक साल में घाटा 58 गुना कैसे बढ़ गया?
प्रमुख सचिव ऊर्जा आर. मीनाक्षी सुंदरम ने सफाई देते हुए कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बिजली उत्पादन महँगा हो गया और राज्य को ऊँचे दामों पर बिजली खरीदनी पड़ी। लेकिन सवाल यह उठा कि जब अन्य राज्यों को केंद्र से राहत, सब्सिडी और बिजली की वैकल्पिक व्यवस्था मिली, तो उत्तराखंड को क्यों नहीं?
उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के अध्यक्ष बॉबी पंवार का तीखा प्रहार
उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा के अध्यक्ष बॉबी पंवार ने इस मुद्दे पर तीखा बयान देते हुए कहा:
“बॉबी ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से कहा कि ये तो धामी_सुंदरम का कमाल है जो 21 करोड़ का घाटा अगले साल 1224 करोड़ हो गया भाजपा के सत्ता में होते हुए भृष्टाचार के सारे रिकॉर्ड टूट रहे हैं,जिस दिन सत्ता बदलेगी, जेलों में ‘हाउसफुल’ के बोर्ड न लगाने पड़ जाए, बॉबी ने यह भी कहा कि
“यह घाटा नहीं, सत्ता में बैठे भ्रष्ट तंत्र की करतूतों का आईना है। राज्य को कर्ज में डुबोकर चंद मुनाफाखोरों की जेबें भरी जा रही हैं। यह किसी एक वित्तीय वर्ष की गलती नहीं है, यह एक संगठित लूट है। जब तक जनता जागेगी नहीं, ये सिस्टम सुधरेगा नहीं।
लेकिन जिस दिन जनता खड़ी हो गई, उस दिन सत्ता के गलियारों से लेकर जेल के दरवाज़े तक सब खुले नजर आएँगे। दोषियों को एक-एक पैसे का हिसाब देना होगा।”
विपक्ष ने की उच्च स्तरीय जांच की मांग
विपक्षी दलों ने इस बढ़ते घाटे की सीबीआई जांच की मांग की है और कहा है कि यह केवल कागजी घाटा नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर हुए घोटाले का संकेत है।
अब देखना यह होगा कि क्या सरकार इस गंभीर मुद्दे पर पारदर्शी जांच की पहल करती है या इसे भी अन्य घोटालों की तरह फाइलों में दफना दिया जाएगा।
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