देवरियाताल में ‘काफल फेस्टिवल’ का भव्य समापन: भीमशिला बनी मंच, पाण्डवाज की प्रस्तुति रही आकर्षण का केंद्र

रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड —  उत्तराखंड की सांस्कृतिक चेतना को फिर से जगाने वाला ‘काफल फेस्टिवल’ 20 जून को देवरियाताल के समीप स्थित सारी गांव में सफलतापूर्वक संपन्न हो गया। प्रसिद्ध लोकबैंड Pandavaas द्वारा आयोजित यह पाँच दिवसीय आयोजन सिर्फ एक सांस्कृतिक महोत्सव नहीं, बल्कि लोक, प्रकृति और समाज को जोड़ने वाला एक प्रेरक प्रयोग बनकर सामने आया।

 

समापन दिवस: परंपरा, पहाड़ और प्रस्तुति का त्रिवेणी संगम

समापन दिवस का आयोजन सारी गांव के खेतों के बीच स्थित एक विशाल चट्टान भीमशिला पर किया गया, जिसे प्राकृतिक मंच के रूप में सजाया गया। दर्शकों के बैठने के लिए खेतों की सीढ़ीनुमा ढलानों को ‘ओपन थिएटर’ का रूप दिया गया, और पीछे की ओर तुंगनाथ-चोपता की वनों से आच्छादित पहाड़ियों ने एक प्राकृतिक पृष्ठभूमि रची — मानो मंच और प्रकृति एक हो गए हों।

 

सांस्कृतिक गतिविधियों की झलक

फेस्टिवल के पाँच दिनों में वाइल्ड फोटोग्राफी वर्कशॉप, बर्ड वॉचिंग, देवरियाताल ट्रैक सफाई अभियान, योग सत्र, पर्यटन एवं प्रकृति पर विमर्श, गढ़वाली कवि सम्मेलन और अंत में Pandavaas का लाइव संगीत कार्यक्रम शामिल रहे।

 

पर्यटन और पर्यावरण पर हुए विमर्श में राहुल कोटियाल (बारामासा), कैलाश नौटियाल, उपेंद्र नेगी सहित स्थानीय और बाहरी विशेषज्ञों ने भाग लिया। कवि सम्मेलन में बीना बेंजवाल, जगदम्बा चमोला, मुरली दीवान समेत आठ से अधिक कवियों ने गढ़वाली भाषा की गरिमा को मंच पर जीवंत किया।

 

पाण्डवाज की प्रस्तुति बनी आयोजन की आत्मा

समापन की शाम Pandavaas की प्रस्तुति ने समां बाँध दिया। जंगलों की गूंज, बादलों की लुकाछिपी, और लगभग 1500 दर्शकों की उपस्थिति में पाण्डवाज ने लोकगीतों, धुनों और पहाड़ी आत्मा को जीवंत कर दिया। छोटे बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हर कोई झूमता नजर आया।

अनुकरणीय आयोजन

कार्यक्रम में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध था। फसलों या वनस्पतियों को क्षति न हो, इसके लिए खास सतर्कता बरती गई। स्थानीय ग्रामीणों का सहयोग और युवाओं की सक्रियता इस आयोजन को सफल बनाने की रीढ़ रही। नैनीताल, अल्मोड़ा, पौड़ी, कोटद्वार, दिल्ली से लेकर विदेशों से भी युवा शामिल हुए।

 

‘काफल फेस्टिवल’ अब समाप्त हो चुका है, लेकिन इसकी स्मृतियां, ऊर्जा और संदेश दूर तक जाएंगे। यह आयोजन साबित करता है कि जब सृजनात्मकता, संस्कृति और समाज एक साथ आते हैं, तो न केवल एक पर्व रचा जाता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मार्गदर्शन भी छोड़ा जाता है।

 

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