उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक, लोकगायक गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी का कार्यक्रम और किताब कौथिक प्रशासन द्वारा अनुमति न मिलने के कारण रद्द कर दिया गया। यह केवल एक आयोजन का रद्द होना नहीं, बल्कि लोकसंस्कृति, मूल निवास और भू-कानून जैसे जनहित के मुद्दों पर उठ रही आवाज़ को दबाने का प्रयास नजर आता है।
डर किससे? किताबों से या विचारों से?
नेगी जी केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि उत्तराखंड की आत्मा की आवाज़ हैं। वे हमेशा मूल निवास, सशक्त भू-कानून और सांस्कृतिक पहचान जैसे गंभीर मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखते रहे हैं। इस सच्चाई को सुनने में असहज महसूस करने वालों ने अब किताबों के मेले तक को ‘खतरा’ समझ लिया?
नेगी जी ने खुद सोशल मीडिया पर लिखा—
दगड़ियों,
15-16फरवरी को श्रीनगर(गढवाल)मां होण वाला किताब कौथिग कि इजाजत नि मिलणू दुर्भाग्यपूर्ण छ।श्रीनगर शिक्षा को भौत बड़ों केन्द्र छ, मिन सूणि बल भाजपा से जुड्यां बिद्यार्थी परिषद का दबाव पर प्रशासन न किताब कौथिग की इजाजत नि दे । मि सोचणू छौं ये कना बिद्यार्थि अर अधिकारि छन जो किताबू से इथगा डरणा छन ।ये कौथिग मां हिन्दि अंग्रेजि का साथ हमारि लोकभाषा कि किताबू का 40-50
प्रकाशक औणाछा मिन भि औण छौ पर———-।
मतलब कि
“श्रीनगर (गढ़वाल) में होने वाले किताब कौथिक की अनुमति न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रशासन ने भाजपा से जुड़े विद्यार्थी परिषद के दबाव में अनुमति नहीं दी। मैं सोचता हूं, ये विद्यार्थी और अधिकारी किताबों से इतना डर क्यों रहे हैं?”
बड़ा सवाल—ये राज्य किसका है?
शिक्षा और संस्कृति के केंद्र श्रीनगर गढ़वाल में अब छात्र संगठनों के दबाव में प्रशासन भी झुकने लगा है? जब किताबों का मेला और गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जैसे व्यक्तित्व पर प्रतिबंध लगाने की नौबत आ जाए, तो यह सिर्फ एक कार्यक्रम का रद्द होना नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है।
पहाड़ पूछ रहा है—
“भू-कानून से डर, मूल निवास से डर, और अब किताबों से भी डर?”
पहाड़पन की खबरें आपको कैसी लगती हैं? हमें व्हाट्सएप पर अवश्य साझा कीजिए!
अब पहाड़पन पर आप अपने व्यवसाय का भी प्रचार-प्रसार कर सकते हैं।
📞 +917409347010
📞 +917088829995
Leave a Reply