देहरादून, 16 जून 2025 — केंद्र सरकार ने देशव्यापी जनगणना 2027 को लेकर नई अधिसूचना जारी कर दी है, जिसमें इस बार जातिगत आंकड़े एकत्र करने की भी व्यवस्था की गई है। अधिसूचना के अनुसार, जनगणना 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगी, और इसकी तैयारी 2025 से चरणबद्ध रूप में की जाएगी।
यह अधिसूचना 16 जून को “भारत का राजपत्र” (The Gazette of India) में प्रकाशित की गई, जिसमें गृह मंत्रालय द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के साथ-साथ उत्तराखंड के जनजातीय क्षेत्रों में भी जनगणना के लिए विशेष प्रावधानों का उल्लेख है।
अधिसूचना की मुख्य बातें:
अधिसूचना संख्या 2681(अ) के तहत केंद्र सरकार ने जनगणना संचालन के लिए प्रक्रिया अधिसूचित की।
जातिगत आंकड़े पहली बार आधिकारिक रूप से एकत्र किए जाएंगे।
1 अक्टूबर 2026 की मध्यरात्रि (00:00 बजे) को जनगणना का संदर्भ समय माना जाएगा।
उत्तराखंड में गहराई चिंताएं: परिसीमन बनाम पहचान
जनगणना की इस अधिसूचना के बाद उत्तराखंड में विधानसभा परिसीमन को लेकर एक बार फिर से बहस तेज हो गई है। राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में जनसंख्या कम और क्षेत्रफल अधिक है। अगर भविष्य में जनगणना के आधार पर परिसीमन किया गया, तो इससे मैदानी क्षेत्रों की सीटें बढ़ेंगी जबकि पर्वतीय क्षेत्रों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व और भी सीमित हो जाएगा।
“यह अस्तित्व का सवाल है” — कुसुम लता बौड़ाई
सामाजिक कार्यकर्ता कुसुम लता बौड़ाई ने कहा:
“उत्तराखंड की संवैधानिक आत्मा पर्वतीय जनता के अधिकारों से जुड़ी है। यदि परिसीमन जनसंख्या के आधार पर हुआ, तो हमारे पहाड़ी क्षेत्रों की राजनीतिक हैसियत खत्म हो जाएगी। यह केवल संख्या का नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व, पहचान और भविष्य का सवाल है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार को चाहिए कि वह पर्वतीय राज्यों के लिए भौगोलिक विषमता और सामरिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए क्षेत्रफल आधारित परिसीमन की नीति अपनाए।
सामाजिक संगठनों की एकजुटता
राज्यभर में कई संगठनों ने इस अधिसूचना के बाद क्षेत्रफल आधारित परिसीमन की मांग उठानी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि यदि समय रहते यह मुद्दा नहीं उठाया गया, तो उत्तराखंड का मूल स्वरूप और गठन की भावना ही समाप्त हो जाएगी।
उक्रांद के काशीपुर जिलाध्यक्ष जगदीश चंद्र बौडाई ने कहा:
“राज्य का गठन पलायन और उपेक्षा के खिलाफ एक आंदोलन से हुआ था। अगर राजनीतिक शक्ति सिर्फ जनसंख्या के आधार पर बंटी, तो पूरे उत्तराखंड का संतुलन बिगड़ जाएगा।”
निष्कर्ष
जातिगत जनगणना का निर्णय सामाजिक न्याय की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन इससे जुड़े राजनीतिक और भौगोलिक पहलुओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उत्तराखंड जैसे राज्य, जहाँ भूगोल ही सबसे बड़ी चुनौती है, वहाँ प्रतिनिधित्व का आधार केवल जनसंख्या नहीं हो सकता।
अब समय आ गया है कि उत्तराखंडवासी एकजुट होकर क्षेत्रफल आधारित परिसीमन की मांग को नीति-निर्माताओं तक पहुंचाएं — यही राज्य की भावना को सुरक्षित रखने का मार्ग है।
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