भराड़ीसैंण में विधानसभा सत्र शुरू होने से पहले ही जनता की आवाज़ पर ताले जड़ दिए गए हैं। प्रशासन ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 163 का हवाला देकर आदेश जारी किया है। इस धारा के अंतर्गत यदि किसी स्थान पर शांति व्यवस्था और जनसुरक्षा भंग होने की आशंका हो, तो जिला मजिस्ट्रेट या सक्षम अधिकारी वहां कड़े कदम उठा सकते हैं।
आदेश के अनुसार —
1. धरना, जुलूस और प्रदर्शन पर रोक:
विधानसभा परिसर व उसके आसपास किसी भी संगठन या व्यक्ति को धरना, जुलूस या प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं होगी। यानी जनता अपने मुद्दे लेकर सत्र के बाहर भी आवाज़ नहीं उठा सकती।
2. झांकी, जनसभा और भीड़ पर नियंत्रण:
किसी प्रकार की जनसभा, झांकी या लोगों का समूह इकट्ठा करना प्रतिबंधित रहेगा। सरकार के मुताबिक़ यह सुरक्षा की दृष्टि से ज़रूरी है, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या लोकतंत्र में शांतिपूर्ण भीड़ भी अब खतरा मानी जाएगी?
3. लाउडस्पीकर और ध्वनि विस्तारक यंत्रों का प्रयोग वर्जित:
कोई भी संगठन या व्यक्ति न तो माइक का इस्तेमाल कर पाएगा और न ही आवाज़ को बाहर ले जाने वाले किसी यंत्र का। यानी मुद्दों की गूंज सिर्फ़ गले में ही दबकर रह जाएगी।
4. हथियार और शस्त्रों पर सख्त पाबंदी:
कोई भी व्यक्ति विधानसभा क्षेत्र में हथियार या विस्फोटक लेकर प्रवेश नहीं कर सकेगा। यह बिंदु सुरक्षा के लिहाज से तार्किक है, लेकिन इसे उसी आदेश में जोड़कर बाकी आवाज़ों पर भी बंदिश लगा देना आलोचना का विषय है।
5. बैरियर तोड़ने या सुरक्षा घेरा भंग करने वालों पर कार्रवाई:
आदेश साफ़ कहता है कि यदि कोई व्यक्ति सुरक्षा घेरे को तोड़ने की कोशिश करेगा तो तत्काल दंडात्मक कार्रवाई होगी।
असल में विभिन्न संगठन इस सत्र के दौरान सरकार का ध्यान केवल राजधानी गैरसैंण की माँग पर ही नहीं, बल्कि आपदाओं के लगातार संकट, बेरोज़गारी, पलायन, स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों पर भी केंद्रित करना चाहते थे।
लेकिन प्रशासनिक आदेशों ने सत्र शुरू होने से पहले ही यह संदेश दे दिया कि जनता के सवाल विधानसभा की चारदीवारी तक नहीं पहुँचने दिए जाएंगे।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या विधानसभा केवल नेताओं के भाषण और औपचारिक बहस का मंच रह गई है, या फिर यह जनता की आवाज़ सुनने की भी जगह है?
यदि जनता की गूंज को धारा 163 के आदेशों में क़ैद कर दिया जाएगा, तो फिर लोकतंत्र और अधिनायकवाद में फर्क कहाँ बचेगा?
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