“गैरसैंण में जनता के सवाल ज़मीन पर अटके, पर भाजपा प्रभारी और संगठन मंत्री हेलीकॉप्टर पर चढ़े—अब जनता पूछ रही है, उड़ान आपकी थी या खर्च हमारा?”

गैरसैंण सत्र से ज्यादा “हेलीकॉप्टर सैर”?

गैरसैंण विधानसभा सत्र शुरू होते ही उत्तराखंड की राजनीति में एक और बहस छिड़ गई है। प्रदेश भाजपा प्रभारी दुष्यंत गौतम और संगठन मंत्री अजय कुमार सत्र के पहले ही दिन हेलीकॉप्टर से भराड़ीसैंण पहुँचे। अब सवाल यह उठ रहा है कि आखिर यह यात्रा किसके खर्चे पर हुई? जनता के टैक्स के पैसे से या फिर पार्टी फंड से?

 

आलोचक तंज कस रहे हैं कि जब जनता महंगाई, बेरोजगारी और सड़कों की बदहाली से जूझ रही है, तब नेताओं के लिए हेलीकॉप्टर “सुविधा” बन गया है। विधानसभा सत्र में जनता के मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए थी, मगर चर्चाओं से पहले ही नेताओं की यह “हवाई सवारी” सुर्खियों में छा गई।

 

विपक्ष और आमजन दोनों पूछ रहे हैं—आखिर प्रदेश प्रभारी और संगठन मंत्री का विधानसभा सत्र में क्या औपचारिक रोल था? क्या वे जनता की समस्याएँ सुनने आए थे, या फिर सिर्फ “राजधानी के आसमान से नज़ारे देखने”?

 

सबसे दिलचस्प यह है कि भाजपा सरकार और संगठन की ओर से अब तक इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया। चुप्पी ही और सवाल खड़े कर रही है।

 

जनता के तंज कुछ यूँ हैं—

“हम पैदल पहाड़ चढ़ें, आप हेलीकॉप्टर से राजनीति करें।”

 

“गैरसैंण राजधानी की लड़ाई ठंडी पड़ी, पर नेताओं की हवाई उड़ानें गर्म हैं।”

 

यानी विधानसभा सत्र में मुद्दे चाहे कितने ही गंभीर हों, पर फिलहाल बहस का असली मुद्दा हेलीकॉप्टर है—और जनता पूछ रही है, “उड़ान आपकी थी या खर्च हमारा?”

 

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