गांव की संघर्ष समिति की पहल पर प्रशासन का संज्ञान, जल जीवन मिशन,ठेकेदार की लापरवाही पर उठे सवाल

हल्द्वानी, 7 फरवरी 2025 – जल जीवन मिशन के तहत की जा रही सड़क खुदाई से ग्रामीणों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बिना उचित योजना और एनओसी (No Objection Certificate) के हो रहे इस कार्य से गांव की सड़कों की हालत दयनीय हो गई है, जिससे आमजन को आने-जाने में दिक्कत हो रही है। किसान बचाओ संघर्ष समिति और किसान मंच उत्तराखंड प्रदेश ने इस लापरवाही के खिलाफ आवाज उठाई और प्रशासन से उचित कार्रवाई की मांग की। समिति के ज्ञापन पर हल्द्वानी उपजिलाधिकारी कार्यालय ने तुरंत संज्ञान लेते हुए जल जीवन मिशन के अंतर्गत काम कर रही एजेंसी को आवश्यक निर्देश जारी किए हैं।

 

 

गांव में जल जीवन मिशन बना मुसीबत, संघर्ष समिति ने उठाई आवाज

 

समस्या की जड़:

ग्राम चांदनी चौक तीला, पोस्ट ऑफिस देवलचौड़, तहसील हल्द्वानी, जिला नैनीताल में जल जीवन मिशन के तहत पानी की पाइपलाइन बिछाने का कार्य किया जा रहा है। लेकिन इस कार्य के दौरान ठेकेदार द्वारा सड़क की खुदाई अनियमित रूप से की जा रही है, जिससे सड़कें टूट चुकी हैं और लोगों का आवागमन बाधित हो गया है। सबसे अधिक दिक्कत तब होती है जब खुदाई के बाद उचित मरम्मत नहीं की जाती, जिससे ग्रामीणों को लंबी अवधि तक परेशानी झेलनी पड़ती है।

 

समिति द्वारा उठाए गए मुद्दे:

किसान मंच उत्तराखंड प्रदेश के अध्यक्ष किसानपुत्र कार्तिक उपाध्याय ने अपने ज्ञापन में प्रशासन के समक्ष निम्नलिखित गंभीर बिंदु रखे—

 

1. ठेकेदार द्वारा लापरवाही: जल जीवन मिशन के अंतर्गत खुदाई का कार्य कर रहे ठेकेदार को किसी भी प्रकार की एनओसी नहीं दी गई थी, फिर भी कार्य बिना किसी रोक-टोक के जारी था।

 

 

2. कोई पूर्व सूचना नहीं: नियमानुसार, खुदाई से पहले गांव के लोगों को सूचित करना अनिवार्य है, लेकिन ठेकेदार ने किसी को जानकारी नहीं दी, जिससे ग्रामीणों को अचानक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

 

 

3. सड़क की दुर्दशा: खुदाई के बाद सड़क को उसी हाल में छोड़ दिया गया, जिससे मिट्टी और गड्ढों के कारण दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ गई है। कई जगहों पर लोगों को चोटें भी आई हैं।

 

 

4. क्षेत्रीय प्रतिनिधियों की अनदेखी: ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य और अन्य जनप्रतिनिधियों की सहमति के बिना ही यह कार्य शुरू कर दिया गया, जो पूरी तरह से नियमों के विरुद्ध है।

 

 

5. ग्रामीणों को आर्थिक नुकसान: ट्रांसपोर्ट और अन्य सुविधाओं पर बुरा असर पड़ा है। सड़कें खराब होने के कारण व्यापारियों, किसानों और दैनिक कामगारों को अपने काम पर जाने में दिक्कत हो रही है, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।

 

 

6. बेतरतीब ढंग से बिछी पाइपलाइन, किसानों की फसलें प्रभावित:

जल जीवन मिशन के तहत बिछाई जा रही पाइपलाइन को सही तरीके से प्लान किए बिना नहरों के बीच में डाल दिया गया है। इसके कारण खेतों में पानी की निकासी बाधित हो रही है और किसानों की फसलें खराब हो रही हैं। खासकर गेहूं की फसल में अब कूड़ा और गंदगी घुसने लगी है, जिससे फसल बर्बाद होने की स्थिति में पहुंच रही है। किसानों ने इस लापरवाही पर नाराजगी जताई और प्रशासन से तत्काल समाधान की मांग की है।

 

संस्थापक का बयान:

संघर्ष समिति के संस्थापक एवं किसान मंच उत्तराखंड प्रदेश के अध्यक्ष किसानपुत्र कार्तिक उपाध्याय ने कहा,

“हम जल जीवन मिशन का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन इसका कार्य नियमानुसार और पारदर्शी तरीके से होना चाहिए। ठेकेदार की मनमानी के कारण ग्रामीणों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। सबसे गंभीर समस्या यह है कि बेतरतीब पाइपलाइन बिछाने से किसानों की फसलें प्रभावित हो रही हैं, जिससे वे आर्थिक रूप से भी नुकसान झेल रहे हैं। हम मांग करते हैं कि संबंधित विभाग तुरंत हस्तक्षेप करे, ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई हो और सड़क को जल्द से जल्द दुरुस्त किया जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो संघर्ष समिति आंदोलन करने से पीछे नहीं हटेगी।”

 

प्रशासन की कार्रवाई

किसान बचाओ संघर्ष समिति के ज्ञापन के बाद हल्द्वानी उपजिलाधिकारी कार्यालय ने इस मामले पर संज्ञान लिया और जल जीवन मिशन के तहत कार्य कर रहे संबंधित विभाग को निर्देश जारी किए। उपजिलाधिकारी ने उत्तराखंड पेयजल निगम की ग्राउंड इम्प्लीमेंटेशन यूनिट को पत्र लिखकर कहा कि वे जल्द से जल्द अनियमितताओं की जांच कर आवश्यक कार्रवाई करें।

 

किसान मंच उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष किसानपुत्र कार्तिक उपाध्याय ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि जल्द ही सड़कों की मरम्मत नहीं करवाई गई और ठेकेदार की जिम्मेदारी तय नहीं की गई, तो संघर्ष समिति आंदोलन करने को मजबूर होगी।

 

क्या होगा आगे?

अब ग्रामीणों और समिति की नजर प्रशासन पर टिकी है। यदि जल्द ही मरम्मत कार्य शुरू नहीं किया गया, तो संघर्ष समिति बड़े आंदोलन की तैयारी कर सकती है। इस पूरे मामले ने गांव में प्रशासनिक कार्यों की पारदर्शिता को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।

 

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