क्वारब पुल के आगे सड़क पर हर दिन गिर रहा मलबा: कभी हरा-भरा क्षेत्र अब बन चुका है नंगा पहाड़

रिपोर्ट : आयुष रावत 

पहाड़पन न्यूज़

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में अनियोजित विकास अब धीरे-धीरे विनाश का रूप लेता जा रहा है। अल्मोड़ा से करीब 13 किलोमीटर पीछे स्थित ‘क्वारब पुल’ इस खतरे की जीती-जागती मिसाल बन चुका है। यह पुल बागेश्वर, अल्मोड़ा और आसपास के क्षेत्रों को जोड़ने वाला एक महत्वपूर्ण मार्ग है, लेकिन आज इसके आगे की सड़क हर दिन टूट रही है, बिखर रही है।

इस क्षेत्र में कभी लोहे के गार्डर से बना एक पुराना पुल था, जो वर्षों तक मज़बूती से खड़ा रहा और यात्रियों की आवाजाही में अहम भूमिका निभाता रहा। परंतु हाल के वर्षों में इस पुल को हटाकर एक नया सामान्य कंक्रीट का पुल बना दिया गया है। इसके निर्माण के दौरान आस-पास के पहाड़ों का भारी कटान किया गया, जो अब इस क्षेत्र की सबसे बड़ी पर्यावरणीय समस्या बन चुका है।

 

प्राकृतिक सौंदर्य से नंगे पहाड़ तक का सफर

अगर आप इस क्षेत्र की पुरानी तस्वीरें देखेंगे और उसकी तुलना आज के दृश्य से करेंगे, तो आपको ज़मीन-आसमान का फर्क दिखाई देगा। एक समय पर जहां हरियाली से ढके पहाड़ और बहती नदियों का मनोहारी दृश्य था, वहीं आज वहाँ सिर्फ कटा-फटा, उजाड़ और नंगा पहाड़ दिखता है। वह सुंदर नज़ारा अब हर दिन थोड़ा-थोड़ा टूटकर बिखर रहा है।

मलबा गिरना बना रोज़मर्रा की बात

अब स्थिति यह है कि पुल के ठीक आगे की सड़क पर हर दिन भारी मलबा और पत्थर गिरते हैं। यह न केवल वाहनों के लिए बाधा बन रहा है, बल्कि लोगों की जान पर भी बन आई है। बरसात के दिनों में यह खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है।

 

स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन ने पुल तो बना दिया, लेकिन इसके साथ न तो रिटेनिंग वॉल बनाई गई, और न ही जल निकासी की समुचित व्यवस्था। परिणामस्वरूप, ये पहाड़ अब हर दिन दरकते जा रहे हैं।

क्या विकास की दौड़ में हम विनाश को बुलावा दे रहे हैं?

यह घटना सिर्फ क्वारब की नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की उस स्थिति को दर्शाती है, जहाँ अंधाधुंध विकास ने प्राकृतिक संतुलन को खतरे में डाल दिया है। यह सवाल फिर उठता है कि—क्या हम सचमुच विकास कर रहे हैं, या विनाश का रास्ता खुद बना रहे हैं?

 

आलम ये है कि इस पुल के लिए बजट तो लाखों का पास होता है लेकिन इस समस्या का समाधान कभी हो नही पाता,अब समय आ गया है कि प्रशासन, नीति-निर्माता और समाज इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करें। सिर्फ पुल और सड़कें बना देना ही विकास नहीं है, जब तक हम प्रकृति के साथ संतुलन नहीं बैठाते, तब तक हर नया निर्माण एक नई आपदा का संकेत बन सकता है।

 

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