देहरादून, 16 जून 2025 — उत्तराखंड के इतिहास की सबसे भीषण त्रासदियों में से एक केदारनाथ आपदा को आज 12 वर्ष पूरे हो गए हैं, लेकिन उस रात का भयावह मंजर आज भी लोगों की स्मृतियों से नहीं मिटा है। 16 जून 2013 को आई इस भीषण आपदा ने हजारों लोगों की जान ली और पहाड़ों के आंगन में गहरा घाव छोड़ दिया, जिसे आज तक पूरी तरह भुलाया नहीं जा सका है।
आपदा का आरंभ कैसे हुआ?
14 से 17 जून 2013 के बीच उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा हुई। 16 जून की रात को केदारनाथ के ऊपर स्थित चोराबाड़ी झील टूट गई, जिससे भारी मात्रा में जल और मलबा मंदिर क्षेत्र की ओर बहता चला आया। इसके साथ ही ग्लेशियर पिघलने, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं भी दर्ज की गईं। इस त्रासदी ने संपूर्ण केदारघाटी को तबाह कर दिया।
जान-माल की भारी क्षति
सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 5,700 से अधिक लोग लापता या मृत घोषित किए गए। हजारों तीर्थयात्री और स्थानीय नागरिक इस आपदा की चपेट में आ गए। कई गांव पूर्णतः नष्ट हो गए, सड़कें और पुल ध्वस्त हो गए, और राहत कार्य कई दिनों तक बाधित रहा।
केदारनाथ मंदिर कैसे बचा?
इस आपदा में एक चमत्कारिक दृश्य यह भी रहा कि जहां पूरा क्षेत्र मलबे में दब गया, वहीं प्राचीन केदारनाथ मंदिर लगभग सुरक्षित रहा। कहा जाता है कि मंदिर के पीछे एक विशाल शिला आकर अटक गई, जिसने बहते मलबे की सीधी टक्कर से मंदिर को बचा लिया। आज श्रद्धालु इस पत्थर को “भक्ति शिला” के नाम से जानते हैं।
राहत और पुनर्निर्माण
भारतीय सेना, ITBP, NDRF और SDRF ने मिलकर अब तक के सबसे बड़े बचाव अभियानों में से एक चलाया। हज़ारों लोगों को हेलीकॉप्टर और अन्य माध्यमों से सुरक्षित निकाला गया। इस त्रासदी के बाद सरकार ने केदारनाथ क्षेत्र में पुनर्निर्माण और आधारभूत ढांचे के विकास पर विशेष ध्यान दिया।
स्मृति दिवस
हर वर्ष 16 जून को ‘केदारनाथ आपदा स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन हजारों लोगों की स्मृति में समर्पित है, जिन्होंने इस त्रासदी में अपने प्राण गंवाए।
निष्कर्ष
केदारनाथ आपदा ने यह स्पष्ट कर दिया कि हिमालय क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील है और यहां सतत विकास की योजनाएं पर्यावरण की दृष्टि से बेहद सोच-समझकर बनाई जानी चाहिए। 12 वर्ष बीत जाने के बाद भी उस भयावह रात का दर्द आज भी उत्तराखंड के दिल में जीवित है — और शायद कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
रिपोर्ट — पहाड़पन न्यूज़
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