हर साल 1 सितंबर को कुमाऊँनी भाषा दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें हमारी प्राचीन और समृद्ध कुमाऊँनी भाषा की महत्ता और सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है। कुमाऊँनी भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी पहाड़ी जीवनशैली, परंपराएँ, रीति-रिवाज और लोकसंस्कृति का प्रतीक भी है।
कुमाऊँनी भाषा की मिठास और सरलता इसे खास बनाती है। इस भाषा में पहाड़ों की सुगंध, धारा-नदियों की कलकल, और हमारी भावनाओं की गहराई झलकती है। लोककथाएँ, गीत, पहाड़ की कहानियाँ और पर्व-त्योहार कुमाऊँनी भाषा के माध्यम से ही पीढ़ी-दर-पीढ़ी संचारित होते आए हैं।
आज के समय में वैश्वीकरण और अन्य भाषाओं के प्रभाव के कारण हमारी मातृभाषा को खतरा महसूस हो रहा है। इसलिए इस दिन पर समाज को यह संदेश दिया जाता है कि हम अपनी भाषा को संरक्षित करें, सिखाएँ और अपनाएँ। स्कूलों और सामाजिक संस्थानों में कुमाऊँनी भाषा के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें बच्चों और युवाओं को भाषा के महत्व से परिचित कराया जाता है।
कुमाऊँनी भाषा दिवस केवल भाषाई उत्सव नहीं है, बल्कि यह हमारी पहचान और हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति सम्मान और गर्व की भावना को जागृत करने का अवसर भी है। हमें अपनी मातृभाषा का सम्मान करते हुए इसे जीवन में अपनाना चाहिए और आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।
आओ, हम सब मिलकर कुमाऊँनी भाषा को सशक्त बनाएं और अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संजोए रखें।
— जय कुमाऊँ, जय गढ़वाल
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