किसानों के हक़ पर सरकारी प्रहार, सहकारिता चुनाव में गुपचुप खेल!किसान मंच

उत्तराखंड में बहुउद्देशीय सहकारिता समितियों के चुनाव हो रहे हैं, लेकिन क्या ये वाकई किसानों के लिए हैं, या फिर सत्ता की चाल है? किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय ने चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए हैं।

 

चुनाव की ख़बर तक नहीं, फिर ये कैसा लोकतंत्र?

आज नामांकन पत्रों की बिक्री हुई, मगर 70% किसानों को इसकी भनक तक नहीं लगी। आखिर क्यों?

 

हल्द्वानी की 11 समितियों में 1136 मतदाता हैं, लेकिन अधिकांश किसानों को चुनाव की सूचना तक नहीं दी गई।

 

किसानों की समितियों का चुनाव गुपचुप तरीके से किया जा रहा है, ताकि सरकार के चहेते बिना विरोध के काबिज हो सकें।

 

कई गांवों के कृषक खेतों में हैं, मगर वोटर लिस्ट में नाम नहीं।

समितियों के चुनाव शहरों के कार्यालयों में कराए जा रहे हैं, जबकि किसान गाँवों में अनजान बैठे हैं।

 

 

क्या किसानों की समिति पर सत्ता का कब्ज़ा हो रहा है?

कृषि प्रधान देश में किसानों को ही उनके हक़ से वंचित करना क्या सरकार की नई रणनीति है? क्या यह लोकतंत्र का मज़ाक नहीं?

 

किसान मंच की चेतावनी

प्रदेश अध्यक्ष कार्तिक उपाध्याय ने कहा कि अगर चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी नहीं हुए, तो किसान मंच चुप नहीं बैठेगा। किसानों को उनके अधिकारों से वंचित करने का कोई भी प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

 

अगर चुनाव गुपचुप तरीके से होंगे, तो फिर प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा सहकारिता मंत्रालय बनाए जाने का क्या औचित्य रह जाता है?

 

 

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