देहरादून
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मजबूत आवाज उठी है। राज्य के सक्रिय और निर्भीक पत्रकार विजय रावत ने पेयजल निर्माण निगम उत्तराखंड के एक वरिष्ठ अधिकारी सुजीत कुमार विकास पर गंभीर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए शासन को 7 दिनों का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि निर्धारित समयावधि के भीतर इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती, तो वे पत्रकारिता को अलविदा कह देंगे और सचिवालय के बाहर भूख हड़ताल पर बैठेंगे।
तीन बार की शिकायत, फिर भी नहीं हुई कोई कार्रवाई
विजय रावत ने 14 मई 2024, 26 अप्रैल 2024 और 26 सितंबर 2024 को संबंधित अधिकारी के खिलाफ साक्ष्यों सहित शिकायतें दर्ज कराईं। उनका आरोप है कि अधिकारी सुजीत कुमार विकास ने भ्रष्ट तरीकों से भारी संपत्ति अर्जित की, और राज्य में कार्यरत ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने का कार्य किया।
इन शिकायतों के बावजूद, आज तक कोई ठोस जांच या प्रशासनिक कार्रवाई नहीं हुई।
शपथ पत्र में की पुष्टि, फिर भी बनी चुप्पी
पत्रकार रावत का दावा है कि उन्होंने पुलिस के समक्ष शपथ पत्र देकर इस मामले की पुष्टि की है। बावजूद इसके, न केवल उनकी शिकायतों की अनदेखी की गई, बल्कि उन्हें ही कानूनी शिकंजे में फंसाने की कोशिश की गई।
उन पर एफआईआर दर्ज कर दी गई — ये तब हुआ जब वे एक भ्रष्टाचार के मामले को उजागर कर रहे थे।
सोशल मीडिया के जरिए भावुक अपील
अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में विजय रावत ने लिखा:
“अगर 7 दिनों में शासन द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो मैं पत्रकारिता छोड़ दूंगा। क्या फायदा ऐसी पत्रकारिता का जो भ्रष्टाचार उजागर करने पर खुद ही निशाने पर आ जाए?”
उन्होंने यह भी लिखा कि वे सचिवालय के बाहर मौजूद रहकर अपने द्वारा एकत्र किए गए सभी साक्ष्यों को सार्वजनिक रूप से जलाएंगे और अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि यदि इस दौरान उन्हें कोई नुकसान पहुंचता है, तो पूरी जिम्मेदारी राज्य शासन, विशेष रूप से सचिव शैलेश बगोली और विभागीय मंत्री की होगी।
एक पत्रकार, जो हमेशा जनता की आवाज बना
विजय रावत का नाम उन पत्रकारों में गिना जाता है जिन्होंने उत्तराखंड में न्याय की लड़ाई को मजबूती से उठाया है।
उन्होंने अंकिता भंडारी हत्याकांड,
UKSSSC भर्ती घोटाला,
और शिक्षा विभाग में हुए घोटाले
जैसे संवेदनशील मामलों को सामने लाकर राज्यभर में चर्चाएं बटोरीं।
लेकिन अब वही पत्रकार, जब एक अधिकारी की 100 करोड़ से अधिक की संदिग्ध संपत्ति और भ्रष्ट कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हैं, तो शासन और व्यवस्था की चुप्पी सवालों के घेरे में आ जाती है।
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर सवाल
अब सवाल यह है कि उत्तराखंड जैसे संवेदनशील राज्य में यदि एक ईमानदार पत्रकार खुद को असुरक्षित महसूस करता है, और शासन उसकी बातों को अनसुना करता है, तो क्या यह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की सुरक्षा और स्वतंत्रता पर खतरे की घंटी नहीं है?
विजय रावत का यह निर्णय सिर्फ उनके व्यक्तिगत संघर्ष का नहीं, बल्कि पूरी पत्रकारिता बिरादरी और नागरिक समाज के लिए एक चेतावनी है।
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