उत्तराखंड में स्कूली पाठ्यक्रम में बंगाली भाषा को अनिवार्य किए जाने की चर्चा ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा नेतृत्व वाली सरकार राज्य विधानसभा में इस संबंध में एक विधेयक पेश कर सकती है। इस संभावित कदम को लेकर सोशल मीडिया पर विरोध और चिंता की लहर देखने को मिल रही है, खासकर उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) और अन्य विपक्षी दलों की ओर से।
यूकेडी के कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से आशंका जताई है कि यदि बंगाली भाषा को अनिवार्य किया जाता है और साथ ही पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए लोगों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया जाता है, तो इससे राज्य में अवैध प्रवासियों को स्थायी नागरिकता की राह मिल सकती है।
रुद्रपुर के विधायक शिव अरोड़ा द्वारा विधानसभा में यह विधेयक लाए जाने की संभावना को लेकर चर्चाएं तेज हैं। सोशल मीडिया पर यूकेडी से जुड़े अर्जुन सिंह नेगी ने सवाल उठाया—“अब पहाड़ियों का क्या होगा? हमारी बोली, भाषा और संस्कृति का क्या होगा?”
गौरतलब है कि सितारगंज जैसे विधानसभा क्षेत्रों में बंगाली मूल के नागरिकों की संख्या अधिक है। इसी को ध्यान में रखते हुए पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और वर्तमान कैबिनेट मंत्री सौरभ बहुगुणा समेत कई नेता इस वर्ग के समर्थन में मुखर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट ने भी 2019 में संसद में इस समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग उठाई थी।
राज्य सरकार पहले भी इस मुद्दे पर केंद्र को सिफारिश भेज चुकी है, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है। ऐसे में यह देखना अहम होगा कि विधानसभा में इस संभावित विधेयक पर चर्चा होती है या नहीं और यदि होती है, तो उसका असर राज्य की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना पर कैसा पड़ेगा।
पहाड़पन् न्यूज आपके लिए लाता रहेगा इस मुद्दे पर हर अपडेट — जुड़े रहिए।
संपर्क सूत्र : – 7409347010
Leave a Reply