उत्तराखंड की खेती और किसानों की गूंज दिल्ली तक, केंद्र से विशेष बजट व संरक्षण नीति की मांग

नई दिल्ली/उत्तराखंड, 16 जून।

उत्तराखंड की पहाड़ी खेती और वहां के किसानों की समस्याएं अब राष्ट्रीय मंचों तक पहुंच चुकी हैं। नई दिल्ली स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल कॉम्प्लेक्स में आयोजित केंद्रीय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की अहम बैठक में उत्तराखंड किसान मंच के राष्ट्रीय प्रवक्ता व उपाध्यक्ष भोपाल सिंह चौधरी और मंच के प्रदेश प्रभारी पीयूष जोशी ने राज्य के किसानों की आवाज बुलंद की।

 

बैठक की अध्यक्षता CACP के चेयरमैन विजय पाल शर्मा ने की। इसमें चौधरी और जोशी ने उत्तराखंड के सेब, दाल, आलू और अन्य पारंपरिक फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए विशेष बजट और संरक्षित बाड़बंदी योजना लागू करने की पुरजोर मांग की।

 

जंगली जानवरों से तबाह खेती

चौधरी ने कहा, “बंदर, लंगूर और सुअरों जैसे जानवरों का आतंक किसानों की साल भर की मेहनत को बर्बाद कर रहा है। खेती घाटे का सौदा बन चुकी है और किसान खेत छोड़ने को मजबूर हैं।” उन्होंने पलायन रोकने के लिए पहाड़ों में तारबाड़ और संरक्षित बाड़बंदी की योजना पर विशेष बजट की जरूरत बताई।

बद्री गाय और जैविक खेती पर ज़ोर

उन्होंने हिमालयी क्षेत्र की पहचान बद्री गाय के संरक्षण की भी वकालत की। चौधरी ने कहा, “इस गौवंश के दूध में औषधीय गुण हैं, जो पूरे देश को लाभ पहुंचा सकते हैं। यदि सरकार पहाड़ की खेती को संरक्षित करती है तो उत्तराखंड जैविक खाद्यान्न की राजधानी बन सकता है।”

 

“ई-कृषक कार्ड” और बीमा की मांग

प्रदेश प्रभारी पीयूष जोशी ने बैठक में “ई-कृषक कार्ड” लागू करने का सुझाव दिया, जिससे किसानों की सभी सरकारी योजनाएं, बीमा, मापतौल और खरीददारी केंद्र एक कार्ड से जुड़ सकें। उन्होंने कहा, “बेसहारा गौवंश किसानों के लिए अभिशाप बन चुका है। दुर्घटनाओं में जानें जा रही हैं और फसलें लगातार नष्ट हो रही हैं।”

 

जोशी ने फसल की अनिवार्य सरकारी खरीद, तारबाड़ के लिए अलग बजट और निशुल्क बीमा योजना की तत्काल आवश्यकता बताई।

 

नीति निर्माण की ओर ठोस कदम

CACP चेयरमैन विजय पाल शर्मा ने इन सुझावों को गंभीरता से लेने और भविष्य की नीतियों में शामिल करने का आश्वासन दिया।

 

पहाड़ों के लिए विशेष मांगें:

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी का कानून

 

मनरेगा को कृषि कार्यों से जोड़ना

 

कृषि उत्पादों पर GST हटाना

 

नकली खाद-बीज रोकने की कड़ी नीति

 

 

अन्य किसान नेता भी हुए शामिल

 

बैठक में किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट, धर्मेंद्र मलिक, अशोक बालियान, अक्षांश पंडित, बिपिन चंद्र पटेल, सेवा सिंह आर्य समेत अन्य नेताओं ने भी अपने विचार रखे और नीति आयोग से ठोस अनुशंसाएं करने की अपील की।

 

स्पष्ट है कि अब उत्तराखंड के किसान केवल अपने गांवों में ही नहीं, बल्कि दिल्ली के नीति मंचों पर भी अपनी बात प्रभावी ढंग से रखने लगे हैं। पहाड़ की खेती को यदि संरक्षण मिला, तो यह न सिर्फ पलायन रोकेगा बल्कि देश को जैविक खाद्यान्न की ताकत भी देगा।

 

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