वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी जी की फेसबुक वाल से
हम सबके लिए 1 और 2 सितंबर, 1994 का दिन काले दिवस के रूप में है। आज ही के दिन उत्तराखंड राज्य की मांग कर रहे लोगों पर पहले खटीमा और फिर मसूरी में सरकारी हिंसा हुई। इनमें हमने अपने 13 साथियों को खोया। अपनी शहादत देने वालों में भवान सिंह, प्रताप सिंह, धर्मानंद भट्ट, गोपीचंद, सलीम अहमद, परमजीत सिंह, रामपाल (खटीमा); मनमोहन ममगाईं, बेलमती चैहान, हंसा धनाई, बलवीर सिंह नेगी, राम सिंह बंगारी, धनपत सिंह (मसूरी) शामिल थी। राज्य आंदोलन की व्यापकता को इस बात से समझा जा सकता इसमें शहादत देने वालों में एक मुसलमान, एक सिक्ख और एक बरेली निवासी शामिल था। दो महिलाओं ने भी अपनी शहादत दी। इस तरह से इस आंदोलन की ताप से बने राज्य में कई लोगों का लहू शामिल था। इससे बड़े अफसोस की और क्या बात हो सकती है कि मुख्यमंत्री के गृहनगर में खटीमा में हुए इस सरकारी हिंसा की बरसी पर भी पुष्कर सिंह धामी ने तीन जिलों नैनीताल, पौड़ी और नई टिहरी के जिला पंचायतों का शपथ ग्रहण समारोह कराकर जश्न मनाया। खानपूर्ति के लिए हर साल सरकारी कार्यक्रम के तहत वह खटीमा गए, यह उनका रूटीन है।
उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चल रही सरकार बहुत ही संवेदनहीन है। इतनी डरपोक भी कि मुख्यमंत्री को बदलने की अगर किसी ने कोई समीक्षा कर दी तो उनके खिलाफ मुकदमे ठोकने का आदेश जारी कर देती है। जिन शहीदों ने एक खुशहाल राज्य का सपना देखा था। जो आंदोलनकारी नारे लगा रहे थे- ‘रहे चमकता सदा शीर्ष पर ऐसा उन्नत भाल बनाओ, उत्तराखंड को राज्य बनाकर भारत को खुशहाल बनाओ।’ सरकार और ‘राष्ट्रभक्त’ भाजपा ने शहादत दिवस पर बहुत निर्लज्जता के साथ जिला पंचायतों का शपथ ग्रहण समारोह कर जश्न मनाया। यह भी कम खेदजनक नहीं है कि जिन जिला पंचायतों का शपथ ग्रहण समारोह हुआ वे सभी पंचायती व्यवस्था के हत्यारे और सरकार की शह पर राजनीतिक अपसंस्कृति के वाहक रहे हैं। सत्ता की हनक और सरकार की सरपरस्ती में नैनीताल में जिला पंचायत सदस्यों के अपहरण का नंगा नाच हुआ। बेतालघाट में गोली चली। द्वाराहाट में गोली और पत्थर चले। टिहरी में जहां आज जिला पंचायत का शपथ ग्रहण कराया गया, वहां की जिला पंचायत अध्यक्ष ने जिस तरह की राजनीतिक अपसंस्कृति से चुनाव को कलंकित किया वह भाजपा जैसी ‘संस्कारवान’ पार्टी ही कर सकती है। आज के दिन नव निर्वाचित जिला पंचायतों का शपथ ग्रहण कराना पूरी तरह से शहीदों का अपमान है।
भाजपा के लिए हालांकि शहीदों के लिए कभी भी सम्मान नहीं रहा। रामजन्मभूमि के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को ‘मुल्ला मुलायम’ कहने वाली भाजपा ने उन्हें ‘पद्मविभूषण’ से सम्मानित किया था। यह वही मुलायम सिंह यादव हैं, जिनके शासकनकाल में खटीमा, मसूरी, मुजफ्फरनगर के अलावा उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में हुई सरकारी हिंसा में 42 लोगों की शहादत हुई। इनमें से मुख्य अभियुक्त बुआ सिंह को भुवन चंद्र खंडूडी सरकार में राज्य अतिथि का दर्जा देकर उसका रेड कारपेट स्वागत किया। दूसरे अभियुक्त अनंत कुमार सिंह को राजनाथ सिंह ने अपना निजी सचिव बनाकर बचाए रखा। भाजपा के लिए मोदीजी के सामने हमारे शहीदों का भी कोई मान नहीं है। जहां एक ओर पूरा राज्य अपने शहीदों को याद कर रहा है, वहीं भाजपा अपने आका नरेन्द्र मोदी के लिए देहरादून की सड़कों पर तांडव कर रही थी। भाजपा के ‘धाकड़ धामी’, ’सैनिक पुत्र’, ‘राष्ट्रभक्त’, ‘पहाड़ प्रेमी’ खुद खटीमा के निवासी पुष्कर सिंह धामी के लिए शहीदों को याद करने की जगह जिला पंचायतों को जश्न मनाना और कांग्रेस के दफ्तर पर हमला करना प्राथमिकता में है। जब यह चर्चा होती है कि मुख्यमंत्री बदला जा रहा है, तो इसमें भले ही वह नाराज हो जायें, लेकिन इतना संवेदहीन मुखिया तो नहीं होना चाहिए, जो शहीद दिवस पर जश्न वाले कार्यक्रम कराए।
खटीमा और मसूरी के शहीदों का नमन करते हुए यह अफसोस तो है ही कि आपके सपनों का राज्य नहीं बन पाया। यहां खनन और शराब के गठजोड़ से बनी सरकारों ने राज्य को भीषण संकट में डाल दिया है।
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